गोविंद बल्लाल खेर (1710 - 1761), जिन्हे ऐतिहासिक रूप से '
गोविंद पंत बुंदेला ' के नाम से जाना जाता है, 1733 से 1761 के दौरान उत्तरी भारत में एक सैन्य जनरल थे। शुरुआत में, उन्होंने तत्कालीन बढ़ते मराठा सूबेदार मल्हारो होलकर और अन्तजी मानकेश्वर के तहत काम किया और उन्हें गुरिल्ला युद्ध और प्रशासन का अच्छा अनुभव मिला। बाजीराव पेशव ने गोविंद पंत को कुछ जिम्मेदारी सौंपीं और उन्हें बेहद उपयोगी पाया। जल्द ही वह बाजीराव का सबसे पसंदीदा बन गया। 1733 में महाराजा छत्रसाल से पेशवा बाजीराव को प्राप्त बुंदेलखंड साम्राज्य के 1/3 साम्राज्य के लिए अपना ट्रस्टी नियुक्त किया ।
पेशवा की अनुमति के साथ 1735-1736 में, उन्होंने ' सागर ' नामक एक नया शहर बनाया और इसे अपनी राजधानी बना दिया। उन्हें हमेशा मराठा साम्राज्य का सबसे बड़ा ' फंड राइज़र ' माना जाता था ।
1738 से 1760 तक गोविन्द पंत का दबदबा बुंदेलखंड और दोआब में रहा।सागर, जालौन और गुरसराय रियासतें इनके द्वारा ही स्थापित की गईं थीं। गोविन्द पन्त ने बड़े पुत्र बालाजी को सागर का प्रबंध सौपा और छोटे पुत्र गंगाधर राव के साथ कालपी आए तथा कालपी, उरई, जालौन आदि का इलाका उनको देकर इधर का कार्य भार सौंपा। इन्ही गंगाधर राव के पुत्र और वंशज ही बाद में जालौन के राजा कहलाए। गोविन्द पन्त ने अपने एक संबंधी को गुरसराय का इलाका दिया जो बाद में गुरसराय के राजा के नाम से जाने गए। झाँसी के आत्माराम गोविन्द खेर जो यू०पी० विधान सभा के सभापति भी रहे थे इसी वंश के थे। कालपी में गंगाधर राव को कालपी का किला मिला जहाँ उन्होंने अपना घर और मुख्यालय बनाया। मराठा इतिहास में इनको पन्त साहब के नाम से जाना जाता है। बुन्देलखंड में इनको गोविन्द पन्त बुंदेला का नाम मिला। गोविन्द पन्त की एक पुत्री भगीरथी बाई थी जिसका विवाह उन्होंने सागर के विशा जी गोविन्द चन्दोरकर के साथ किया । गोविन्द पन्त ने इन प्रान्तों का प्रबंध इतनी अच्छी तरह से किया कि कि पेशवा ने उनको पालकी का प्रयोग करने का अधिकार भी दिया जो पेशवा के राज में बड़े सम्मान और आदर की सूचक बात थी। इतना ही नही प्रान्त की आमदनी से 750 रुपए पाली खर्च के लिए देने की स्वीकृति भी प्रदान की।
चरखी,रायपुर, कनार, कोंच, मोहम्दाबाद, एट, केलिया, महोबा, हमीरपुर ,जालौन के इलाके में मराठों का अधिकार हो जाने से यहाँ पर बहुत से मराठा परिवार दक्षिण से आकर बस गए। इस कारण इंदौर , धार, ग्वालियर, सागर, दमोह, जालौन, और कालपी में मराठा सभ्यता और संस्कृति का खूब प्रसार हुआ। गोविन्द पंत ने अपना प्रभाव इतना बढ़ा लिया कि मुगल बादशाह ने उनको दोआब से भी कर वसूलने की सनद दे दी। यहाँ के बुंदेला राजाओं को भी गोविन्द पंत ने अपने प्रभाव में ले लिया वे अब हर बात में उनकी सलाह लेने लगे। अब गोविन्द पंत बल्लाल खेर इस क्षेत्र में गोविन्द पंत बुंदेला के नाम से भी प्रसिद्ध हो गए थे।
1905 के सागर जिले के गजेटियर में उल्लेख है कि बाजीराव ने गोविन्द पन्त की निर्भीकता से प्रभावित हो कर ही उनको बुंदेलखंड में भेजा था। बाजीराव जब छत्रसाल की मदद में बुंदेलखंड में आए थे तब गोविन्द पन्त भी उनके साथ यहाँ आए थे।
23 अक्तुबर 1806 में बाँदा में नाना गोविंदराव और ईस्ट इंडिया कंपनी के मध्य एक संधि पर दस्तखत हुए जिसकी बातें संक्षेप में इस प्रकार थीं। इस बारे में एक पत्र इण्डिया आफिस लाइब्रेरी में फ़ाइल न० आईओआर/एफ/1498/58824 अक्तुबर 1806. इण्डिया पोल.16 सितंबर.1806E/4/754 है जिसके पेज न० 28-29 के कंटेंट्स इस प्रकार हैं जो आपसे साझा कर रहा हूँ।
1- नाना गोविंदराव ईस्ट इंडिया के क्षेत्र पर कभी आक्रमण नही करेंगे और न उन राजाओं पर आक्रमण करेंगे जिनकी कंपनी सरकार से संधि है। 2- नाना गोविंदराव कालपी शहर, जिला तथा सूची में दर्शाए गए यमुना के किनारे स्थित रायपुर के पास के गांवों से अपने अधिकार त्याग देंगे। 3- नाना कंपनी सरकार द्वारा घोषित भगोड़ों को यदि वह उनके राज में आता है, पकड़ कर कंपनी सरकार को सौंप देंगे। 4- कंपनी सरकार नाना गोविंदराव को कालपी शहर, जिला और किले के मूल्य के बराबर का इलाका अन्य स्थान पर दे देगी। 5- नाना गोविंदराव बचे हुए अपने राज के स्वतंत्र राजा माने जायगें। 6- यदि गोविंदराव के संबंधी रिस्तेदार नाना के विरुद्ध कोई शिकायत करते हैं तो नाना का निर्णय ही अंतिम होगा। 7- पन्ना स्थित हीरों की खानों पर गोविंदराव का अधिकार पूर्ववत रहेगा। 8- नाना गोविंदराव उनके पूर्वजों, रिश्तेदारों के जो भी बाग़, बिठूर, दोआब, गंगा के किनारे बनारस, कालपी, रायपुर या किसी अन्य स्थान पर हैं तथा वे स्थान अब कंपनी सरकार के आधीन हैं उन सब पर गोविंदराव और उनके परिवारजनों का ही अधिकार रहेगा। 9- कालपी को छोड़ कर अन्य क्षेत्र जो बुंदेलखंड और सागर में नाना या उनके वंशजों के अधिकार में हैं वह उनके तथा उनके उतराधिकारियों के पास ही यथावत रहेगे 10- यह संधि जिसमे दस धाराएं हैं जिस पर गवर्नर जनरल के एजेंट कैप्टेन जान बेली और नाना गोविंदराव के प्रतिनिधि भाष्कर क्रष्णा राव ने ह्श्ताक्षर किये।
असल में बुंदेलखंड का पूरा इलाका पेशवा की व्यक्तिगत जागीर थी।सतारा के मराठा राज से इसका कोई संबंध नहीं रह गया था। पेशवा की इच्छा थी कि बड़े होने के कारण रघुनाथ राव सागरवाले का पुत्र ही बुंदेलखंड का मामलातदार बने। 1818 में जनरल मार्शल और ब्रिगेडियर वाटसन ने सागर पर अधिकार कर लिया। रघुनाथ राव और रुकमा बाई को जो सागर का सूबा संभाले थीं, अंग्रेजों ने दोनों को जबलपुर निर्वासित करके दो लाख पेंशन देकर सागर पर अंग्रेजों का शासन शुरू किया।
वर्तमान में यह राजा सागर का परिवार जबलपुर में निवासरत है कैसी विडम्ना है की जो परिवार देश के लिए अंग्रेजो से लड़ा वह साधारण जीवन जी रहा है और अंग्रेजो का साथ देने वालो (21-तोपों की सलामी वालो ) के आज भी राजसी ठाट बाट है ।
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