विनोद जाधव एक संग्राहक

Sunday, 20 January 2019

महाबली महायोध्दा दत्ताजीराव शिंदे


महाबली महायोध्दा दत्ताजीराव शिंदे

सन १७६० का समय था, अजेय मराठा फौज खैबरखिंड के कडवे अफगाणी पठाणों को धूल चटा चूकी थी। लाहोर पर जीत मिलने के बाद मराठा छत्रपति दिल्ली पर राज करेंगे ये लगभग तय बात थी। पुरे एशिया की स्वतंत्र मुस्लिम सत्ता का सिंहासन दिल्ली अब मराठा साम्राज्य के हाथ लगनेवाली है ये जान कर नजीबखान रोहिला ने दुर्राणी बादशहा अहमदशाह अब्दाली समेत सभी मुस्लिम राज्यों को इस्लाम की रक्षा हेतू सहाय्यता के लिये संदेश भेजना शुरु किया। आनेवाले समय मे दिल्ली के लिये महासंग्राम होगा ये तय बात थी।
इसी समय ग्वालियर के शिंदे और इंदौर के होळकर इन दो महाबली सेनानियों ने पुरा उत्तर भारत मराठा साम्राज्य मे जोड लिया था। शिंदे कुल की कमान दत्ताजीराव शिंदे संभाल रहे थे, ये राणोजीराव शिंदे के बेटे तथा जयाप्पाराव शिंदे के भाई और महाराजा महादजी शिंदे के सौतेले भाई थे। १७५५ मे शिंदे कुल की कमान जयाप्पादादा के पुत्र जनकोजीराव के हाथ मे थी, लेकिन जनकोजी के नाबालिग होने के कारण दत्ताजीराव ही असल प्रमुख की भूमिका मे थे। दत्ताजीराव-जनकोजीराव की चाचा भतीजे की जोडी ने कुकडी की लडाई मे निजामको पराजित कर दिया था, इस लडाई के चर्चे पुरे हिंदुस्थान मे थे। १७५६ मे दत्ताजीराव ने मारवाड का राज्य जीत कर उसका १/३ हिस्सा मराठा साम्राज्य से जोड दिया और ५ करोड की खंडणी वसुली थी। १७५८ मे दत्ताजीराव का विवाह हुआ और जनकोजी के साथ वो उज्जैन आ गये। वहाँपर मल्हारबाबा होळकर ने नजीब की तरफ से रद्दबदली की और दत्ताजी को नजीब के खिलाफ कार्रवाई करने से रोका। लेकिन ये बात जनकोजी को पसंद नही आयी। दत्ताजी को भी पेशवा का आदेश था, आखिर नजीब का बंदोबस्त करने और लाहौर पे कब्जा करने के लिये दोनो उज्जैन से निकल पडे। "दत्ताजी जो ठान लेते है वो कर के दिखाते है" इतना पेशवा का उनपर विश्वास था। १७५८ दत्ताजीराव ने लाहौर फतेह किया और नजीब को ठिकाने लगाने के इरादेसे यमुना किनारे रामघाट पर वो दाखिल हुए।
यमुना नदी मतलब छोटा दर्या ही थी। नजीब ने यही मौका देखकर अपनी चाल चली। यमुना पार करने के लिये दत्ताजीराव को कश्तियों का पूल बनवा देने का वादा नजीब ने किया और बस उस काम को टालता रहा। अप्रैल से अक्तूबर तक मराठा फौज यही पर नजीब के पूल के इंतेजार मे अटकी रही।
इसी दौरान नजीब ने दत्ताजी को घेरने की पुरी तय्यारी शुरु कर दी। जिहाद के नाम पे सभी मुस्लिम राजाओं को उसने एक किया। नवंबर १७५९ मे नजीब के बुलावे पे अब्दाली दत्ताजीराव पे पिछे से हमला करने हेतू बढा आया। दत्ताजी दोहरी मुसिबत मे थे, आगे पूल नजीब के कब्जे मे और पिछे से अब्दाली! लेकिन हटे वो मराठा कैसा? दत्ताजीराव दुगनी ताकत से नजीब पर सामने से टूट पडे, शुक्रताल से नजीब को पिछे धकेल कर गंगा के पार खदेड दिया। लडाई तो जीत ली लेकिन दत्ताजी और जनकोजी दोनो घायल थे। कायर नजीब ने दत्ताजी से सुलह कर ली। दिसंबर मे अब्दाली कुरुक्षेत्र पर डेरा डाल चुका था। सुजा ने दत्ताजी को १ करोड की खंडणी देने के नाम पर कुरुक्षेत्र मे रोक रख्खा था।
आगे रोहिले और पिछे अब्दाली, पीछे हटने का विचार भी उस महारथी के मन मे आना असंभव था। आखिरकार उन्होने परिवार के साथ जनकोजी को दिल्ली रवाना किया और कुंजपुरा के पास अब्दाली से लडाई कर अब्दाली को पराजीत कर दिया, तारीख थी २४ दिसंबर १७५९। मुँह की खाकर अब्दाली यमुनापार हो गया और नजीब, सुजा और महम्मद बंगश को शामिल हो गया। सभी मुसलमान एक हो चुके थे, दत्ताजीराव नाम का शेर अकेला पड चुका था। पेशवा से मदत मिले ना मिले, लेकिन आखिरी साँस तक लडने का इरादा वीर मराठा ने बना लिया था। अपनी फौज लेकर वो दिल्ली मे जनकोजी से मिल गये।
युध्द अटल है ये बात जनकोजी और दत्ताजी समझ गये थे। रणनिती बन रही थी। १० जनवरी १७६०, युध्दसज्ज मराठा तय्यार खडे थे। विशाल यमुना का अंदाजा लगाना सेनापतियों को संभव नही था। अचानक दुश्मन नदी पार कर के सिधा हमला करने लगी, दत्ताजी क्रोधित हो उठे, युध्द का जज्बा नस नस मे समाने लगा, मानो इसी घडी का उन्हे इंतेजार था। दत्ताजीराव ने विनाविलंब अपनी फौज को ३ हिस्सो मे विभाजीत कर, एक टुकडी अपने साथ ले वीर अपने लालमनी घोडे पर सवार हो युध्दभूमी की तरफ किसी तुफान की तरह जाने लगा, नजीब के खून की प्यासी मराठा फौज उनके पिछे दौड पडी।
हर हर महादेव की गर्जना से मानो धरती हिलने लगी। तलवार की खनक, वीरों की गर्जनाने हाहाकार मचा दिया। कुछ पल की शांती अब प्रलय मे बदल चुकी थी।
मराठा फौज के पास बंदुके नही थी, अब्दाली की ताजा दम की पठान फौज थी। बंदुक की मार से एक एक मराठा वीर हुतात्मा होने लगे, लाशों का ढेर लग गया। लेकिन दत्ताजीराव का तांडव अपने चरम पर था सामने आता हुआ पठान और उसका सिर इतना ही उन्हे नजर आ रहा था। दत्ताजीराव तलवार साक्षात रणचंडी बनी हुई थी, बिजली की रफ्तार से पठानों के सिर काटती वो तलवार उनमे खौंफ भरने लगी। तभी एक दूत खबर ले आया की दुश्मन ने तीनो तरफ से हमला कर दिया है और मालोजी भी कही लापता है। ये सुनकर दत्ताजी जो पहले ही बेलाग, बेफाम थे दुगनी रफ्तार से युध्दभूमी मे कूद पडे। खून से सनी तलवार ले कर लडनेवाले दत्ताजी को देख कर मराठा फौज फिर से नये उत्साह के साथ लडने लगी। तलवार का हर घाव पठान की मुंडी काटकर ही दम ले रहा था, सिरकटी लाशों से निकले खून से धरती लाल हो गयी थी। दत्ताजीराव की तलवार पठानों को मराठा बहादुरी की झलक दिखा रही थी।
दत्ताजीराव की ही तरह जनकोजीराव भी जरीपटके के पास रहकर पठानों को जहन्नुम भेज रहे थे, तभी दुर्भाग्यवश उनके हाथ मे गोली लगी और वो घोडे से गीर पडे। जैसे ही ये खबर दत्ताजीराव तक पहुँची क्रोधित दत्ताजी की तलवार सामने आते हर शत्रू की जान लेकर ही छोड रही थी, "जय भवानी" "हर हर महादेव" की गर्जना के साथ वो मानो युध्दभूमी मे तांडव करने लगे। एकाएक पास ही लडते दगाबाज नजीब पर उनकी नजर पडी, उनकी आँखो से मानो आग बरसने लगी; बिच मे आते हर अफगान की मुंडी काटते हुए दत्ताजीराव किसी शेर की तरह नजीब पर झपट पडे।
लेकिन भाग्य फिर से मराठों से दगा कर गया, अचानक कहीँ से आया एक जंबुरे का गोला दत्ताजीराव के सिने को छलनी कर के उनके घोडे की पिठ से टकराया और दत्ताजी नीचे गिर गये। ये देखकर कायर कुत्बशहा और दगाबाज नजीब दत्ताजी की ओर लपके, उस हाल मे भी दत्ताजी नाम का वो महारथी लडने के लिये तलवार उठा रहे थे, निहत्थे दत्ताजी के सामने भाला लहराकर कुत्बशहा बोला, "क्युँ पाटील और लडोगे?" इस चुनौती पर महाबाहू दत्ताजीराव ने जो जवाब दिया वो मराठा इतिहास की ही नही बल्कि हिंदू इतिहास की पहचान बन गया, कुत्बशहा की आँख से आँख मिलाकर दहाड पडे दत्ताजी
"क्युँ नही? बचेंगे तो और भी लडेंगे!!!"
दक्षिण मे निजाम और उत्तर मे अब्दाली को पराजित करनेवाले उस शेर की दहाड सुनकर कुत्बशहा ने भाला उनके सिने मे उतार दिया, ये देख कायर नजीब ने अपनी जमदाड से उनका सिर धड से अलग कर दिया। वो सिर भाले पे लगाकर नजीब अब्दाली को दिखाने ले गया।
दत्ताजी देश धर्म पे कुरबान हो गये, अफगानिस्तान तक मराठा ध्वज लगाने वाला महायोध्दा कुरबान हो गया। धरती भी थम गयी, यमुना का प्रवाह भी स्तब्ध हो गया, अफगान भी आश्चर्य से इस बलिदान को देखते रह गये।
आखिरी साँस तक लडने का निश्चय पुरा कर के दत्ताजीराव ने भारत भूमी को अपने खून का अभिषेक कर दिया।
वो दिन था १० जनवरी १७६०
🙏
(Original article by swarajyanama blog, translated by शंभूराजे जयसिंगराव भोंसले)
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©TheMightyMaratha
महाबली महायोध्दा दत्ताजीराव शिंदे की पावन स्मृती को कोटी कोटी नमन

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