भारत
की आजादी के लिए अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र आन्दोलन सन 1857 में प्रचण्ड
रूप से हुआ था. देश के बहुत सारे राजा, महाराजा, बादशाह, सामंत, जागीरदार
इस संघर्ष में शामिल थे| देश में प्रचलित रुढ़िवादी रीति-रिवाजों, परम्पराओं
के कारण भारतीय सवतंत्रता संग्राम में भारतीय महिलाएं समुचित स्थान पाने
में हालाँकि वंचित रही, फिर भी स्वतंत्रता संग्राम रूपी इस यज्ञ में कई
महिलाओं ने सक्रीय आहुति देकर देश की स्वतंत्रता के लिए शुरू की गई जंग में
निर्णायक भूमिका निभाई| रानी लक्ष्मीबाई, बैजाबाई, चौहान रानी, भीमाबाई,
आलिया बेगम आदि कई नाम है जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों के खिलाफ
बढ़-चढ़ कर सैन्य अभियानों का नेतृत्व किया और युद्ध में में अपनी वीरता,
साहस, शौर्य के बलबूते अंग्रेजों को नाकों चने चबाने को मजबूर किया|
सन 1850 में रामगढ़ राज्य (वर्तमान मंडला जिले का गढ़) के अंतिम राजा
लक्ष्मण सिंह (Raja Laxman Singh, Lodh Rajput) के निधन के पश्चात् उनका
उतराधिकारी विक्रमजीत गद्दी पर बैठा| विक्रमजीत का विवाह मनकेड़ी के जागीर
के राव गुलजार सिंह की पुत्री अवंतीबाई Avanti Bai के साथ हुआ था|
विक्रमजीत गद्दी पर बैठे उस वक्त मानसिक रूप से अस्वस्थ थे अत: उन्हें
राज्य की गद्दी से उतार दिया गया| राज्य के शासन का पूरा भार रानी अवंतीबाई
Rani Avanti Bai के कन्धों पर आ गया| अंग्रेज स्थानीय शासन में दखलंदाजी
करने के लिए ऐसे ही मौकों की हर समय तलाश में रहते थे| इतिहास में ऐसे बहुत
से उदाहरण है जब अंग्रेजों ने राज्य की विरासत को लेकर खूब राजनैतिक खेल
खेलें है| विक्रमजीत की मानसिक अस्वथता का लाभ उठाते हुए रामगढ राज्य में
भी अंग्रेजों ने प्रशासनिक कार्यों में दखलंदाजी शुरू कर दी| अपनी इस नीति
के अनुसार अंग्रेजों ने बिना रानी की सहमति के रामगढ में तहसीलदार नियुक्त
कर दिया. जिसका रानी ने कड़ा विरोध करते हुए तहसीलदार को हटा दिया और राज्य
के शासन की पूरी बागडोर अपने हाथ में ले ली| राज्य की सत्ता पर आधिपत्य
ज़माने के बाद रानी ने राज्य की अंग्रेजों से सुरक्षा के लिए अपनी सैनिक
शक्ति बढ़ानी शुरू कर उसे सुदृढ़ किया| इन्हीं दिनों अंग्रेजों ने मंडला
राज्य पर अपना राजनैतिक प्रभुत्त्व जमा कर आधिपत्य स्थापित कर लिया था,
उससे खिन्न होकर मंडला के राजकुमार ने पत्र लिखकर रानी से अंग्रेजों के
खिलाफ सहायता मांगी साथ ही आजादी के लिए होने वाली संभावित जंग का नेतृत्व
करने का आग्रह किया|
मंडला Mandla के राजकुमार के निमंत्रण को स्वीकार करते हुए रानी अवंतीबाई
ने मंडला राज्य को अंग्रेजों के प्रभुत्व से मुक्त कराने का संकल्प लिया और
अंग्रेजों के खिलाफ रामगढ और मंडला राज्यों की सेनाओं का नेतृत्व करते हुए
स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी सुलगा दी जो चारों और फ़ैल गई| मध्य भारत
में 1857 की क्रांति की लहर शुरू होते ही रानी को भी इशारा मिल गया था और
वह देश की आजादी के लिए आहूत युद्ध रूपी में यज्ञ में आहुति देने अपनी सेना
सहित चल पड़ी| उस वक्त अंग्रेजों का देश में देशी रियासतों को बर्बरता
पूर्वक अपने राज्य में मिलाने का कुचक्र चल रहा था, इसी कुचक्र को तोड़ने,
उसका अंग्रेजों का बदला लेने के लिए रानी अवंतीबाई ने मंडला नगर की सीमा पर
खेरी नामक गांव में अपना मोर्चा जमाया और अंग्रेजों को युद्ध के लिए
ललकारा| अंग्रेजों ने अपने एक सेनापति वार्टन को रानी से मुकाबले को सेना
सहित भेजा| दोनों सेनाओं के बीच घमासान युद्ध हुआ, तोप, बंदूकें, तलवारें
खूब चली| एक तरफ वार्टन के नेतृत्व में भाड़े के सैनिक अंग्रेजों के लिए लड़
रहे थे, दूसरी और अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता और स्वाभिमान के लिए भारत
माता के वीर सैनिक सपूत रानी अवंतीबाई के नेतृत्व में मरने मारने को उतारू
होकर युद्ध में अपने हाथ दिखा रहे थे| आखिर रानी अवंतीबाई के नेतृत्व में
मातृभूमि के लिए बलिदान देने का संकल्प लिए लड़ने वाले शूरवीरों के शौर्य के
आगे अंग्रेजों के वेतनभोगी सैनिक भाग खड़े हुए और कैप्टन वार्टन को अपने
हथियार फैंक रानी के चरणों में गिर कर प्राणों की भीख मांगनी पड़ी|
रानी अवंतीबाई ने भी भारतीय संस्कृति व क्षात्र धर्म का पालन करते हुये
चरणों में गिर कर प्राणों की भीख मांग रहे राष्ट्र के दुश्मन कैप्टन वार्टन
को दया दिखाते हुए माफ़ कर जीवन दान दे दिया| इस तरह रानी ने अपने राज्य के
साथ मंडला पर अंग्रेज आधिपत्य ख़त्म कर अधिकार कर लिया और अपने पति की
अस्वस्थता के चलते उनकी जगह लेकर अपने राज्य की स्वतंत्रता, संप्रभुता को
कायम रखा और शक्तिशाली अंग्रेजों को युद्ध में हराकर अपनी बहादुरी, साहस,
शौर्य, नेतृत्व क्षमता का प्रदर्शन किया|
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