विनोद जाधव एक संग्राहक

Wednesday, 13 March 2019

गोहद का किला और मराठा वीरो का पराक्रम (मराठा वीरो कि अनसुनी कहाणी ) भाग ५



गोहद का किला और मराठा वीरो का पराक्रम
(मराठा वीरो कि अनसुनी कहाणी )
भाग ५
गोहद किले में सिंधिया के सूबेदार अम्बा जी इंग्ले ने अंग्रेज़ो से संधि कर सन 1804 में गोहद का किला कीर्तिसिंह को सौप दिया।पर यह ब्यबस्था अल्पजीबी शिद्ध हुई। सिंधिया जैसे शक्तिशाली शासक का विरोध कर पाना अब अंग्रेज़ो के लिए संभव नही रह गया था।
22 नवंबर सन 1805 सर्ज़ी अंजन गांव की संधि संशोधित कर अंग्रेज़ो ने फिर ग्वालियर एवं गोहद किलो पर सिंधिया का अधिकार मान लिया ।
संधि अनुसार धौलपुर , बाड़ी , राजाखेड़ा के परगने गोहद के बदले राणा कीर्ति सिंह को प्राप्त हुए। दिसंबर 1805 ई में नई संधि के अनुसार कीर्ति सिंह धौलपुर रबाना हो गए।
राणा कीर्ति सिंह के अनुयायीओं में राणा के गोहद छोड़ने को लेकर असंतोष हुआ । उन्होंने विद्रोह कर दिया । विद्रोह को दबाने के लिए 19 फरवरी 1806 को अंग्रेज़ो ने गोहद पर आक्रमण कर दिया।विद्रोहियो से समझौता पश्चात 27 फरवरी सन1806 ई को गोहद का किला सिंधिया को सौप दिया गया।
जाटों की 360 गढ़िया थी।गोहद का किला दुर्ग निर्माण कला का अद्भुत नमूना है। किले को वेसली नदी अर्धवृत्ताकार रूप में घेरे हुए है। किले बाह्य परकोटा लगभग 5 किमी का है जसमे सात द्वार इटवाली , बरथरा , गोहदी , विरखडी , कठवाँ , और खरौआ आदि गाँवों के नाम से है। इन दरबाजों मे आधा फ़ीट की कील युक्त सुदृढ़ फटाक लगबाये गए थे।
किले के भीतरी भाग में रक्षापंक्ति गहरी खाई तथा ऊँची प्राचीरों से निर्मित की गई है यह एक ओर लक्ष्मण ताल तथा दूसरी ओर गहरी वेसली नदी से सुरक्षित थी। इस प्राचीर में केबल हाथिया पौर और सांकल नाम से दो दरबाजे है।
राजा के व्यक्तिगत प्रासादों की सुरक्षा के लिए एक चौथी सुरक्षा पंक्ति तैयार की गई थी जो लगभग आधा किमी थी। किले के सभी मुख्य निर्माण इसी के अंदर है।इनमें सात भवर , शीश महल ,दीवाने आम आदि प्रमुख है।
केबल राणा छत्र सिंह द्वारा निर्मित नवीन महल इस प्राचीर के बाहर है। इस महल में घुमावदार ढलवे रास्ते से घोड़े पर बैठ कर ऊपरी मंजिल तक पहुँचा जा सकता है।
राणा छत्र सिंह ने अपनी ग्रीष्मकालीन राजधानी बेहट में एक पहाड़ी पर महल का निर्माण किया था।इस महल का नाम छत्रपुर रखा गया था। जाटों ने अपने राज्य में बड़ी संख्या में तालाब , मंदिरों आदि का निर्माण भी कराया था।
राज्य की आय का मुख्य स्त्रोत कृषि पर लगने बाला कर था। कर की बसूली आनाज़ के रूप में की जाती थी। राज्य में जागीरदारी ब्यबस्था लागू थी।
कीर्ति सिंह के बाद देश की स्वाधीनता तक धौलपुर में 4 जाट शासक हुए। 15 अगस्त 1947 को उदयभान सिंह धौलपुर रियासत के शासक थे।
इस प्रकार हम देखते है कि जो जाट , जो सन 1505 ई में चम्बल पार कर ग्वालियर गोहद क्षेत्र में आये थे, तीन शताब्दी पश्चात बापस चम्बल पार उत्तर की ओर लौट गए।
संदर्भ – 1. अजय अग्निहोत्री कृत गोहद के जाटों का
इतिहास।
2. ग्वालियर स्टेट गज़ेटियर

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