गोहद का किला और मराठा वीरो का पराक्रम
(मराठा वीरो कि अनसुनी कहाणी )
भाग ४
अमायन और कैथा की गढ़ी भी जीत ली गई। अगस्त 1768 ई में भरत पुर के शासक जबाहर सिंह की हत्या हो गई। अब गोहद के राणा का कोई शक्ति शाली सहयोगी नही बचा। उसने मराठाओ के विरुद्ध मुगल सम्राट , अंग्रेज , फ्रांसीसी, तथा बंगाल के मीर कासिम तक से संपर्क किया पर कोई संतोषप्रद समाधान न हो सका।
सन 1780 में मराठाओ ने फिर गोहद पर आक्रमण किया। कैप्टन.पोफम के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना की मदद जाटों को मिलने से मराठों को गोहद से पलायन करना पड़ा।
सन 1780 में जाटों ने लहार पर आक्रमण कर उसे लूट लिया गया। आंग्ल – जाट सेनाओं ने 4 अगस्त सन1780 को ग्वालियर दुर्ग पर अधिकार कर लिया। यह राणा छत्र सिंह के जीवन की महान सफलता थी।
सन 1783 में मराठों जाटों के इलाके को रौदाना आरम्भ कर दिया। सन 1783 ई में महादजी ने ग्वालियर किले का घेरा डाला। मराठों ने राणा के उच्च पद पर नियुक्त मोतीमल को अपनी ओर मिला लिया।सिंधिया ने दो बटालियन मोतिमल के अधिकृत क्षेत्र में भेजी और किले पर आधिपत्य कर लिया गया।
जाट रानी महल के भीतर भाग में चली गई, उसने दरबाजे बन्द कर इमारत में आग लगा ली और स्वयं जल कर मर गई।
जनवरी 1784 ई को गोहद क़िले का घेरा डाल दिया गया। राणा छत्र सिंह की दशा अत्यंत सोचनीय थी।उसने अत्यंत निराश स्थिति में 1मार्च 1784 को उसने किला महादजी को सौप दिया।
महादजी ने गोहद के राणा के निवास हेतु सबलगढ़ किले में ब्यबस्था की, पर राणा सबलगढ़ को पाकर भी बहुत दुखी था । अतः सबलगढ़ जाने के पूर्व ही करौली के शासक माणिक पाल यहाँ भाग् गया।
महादजी की सेना ने उसका पीछा किया घबड़ा कर करौली के शासक ने राणा को कैद कर सपरिवार मराठों को सौप दिया। सन 1785 ई में विष देकर उसकी हत्या कर दी गई।
छत्र सिंह पराजय और हत्या के बाद गोहद के दुर्दिन आ गए। यद्यपि अठारह वी सदी के अंत मे अंग्रेजों से प्रोत्साहन पाकर छत्र सिंह के चचेरे भाई तथा नीरपुरा के सामंत कु.ताराचंद के पुत्र कीर्ति सिंह को गोहद का राणा घोषित कर दिया गया।
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