विनोद जाधव एक संग्राहक

Tuesday, 28 July 2020

जलस्रोतों की उद्धारक : अहिल्याबाई

जलस्रोतों की उद्धारक : अहिल्याबाई #
जेठ_में_जल
देश की प्रेरणास्पद नारी शक्तियों में अहिल्याबाई का नाम श्रद्धा से लिया जाता है । यह नाम देश के उन तीर्थों के साथ विशेष रूप से जुड़ा हुआ है जो जन आस्था के केंद्र हैं। जगत्-जनार्दन की अर्चना के साथ ही जन-जन के लिए जलसेवा के निमित्त इस महामना का नाम लिया जाता है। एक कहावत सी लोक में है : जनार्दन ने अहिल्या की जल सेवा स्वीकार की। सचमुच, एक प्रजानिष्ठ शासक होकर अहिल्याबाई ने जल सेवा के लिए जो संकल्प किया और जलस्रोतों के उद्धार सहित निर्माण के लिए संपदादान का जो पुण्यकार्य किया, उसने उनके पुण्य साम्राज्य की सीमाओं को बहुत बढ़ाया और चिरायु किया। माहिष्मती में नर्मदा के घाट, जिनकी रचना तीर्थ पर शिव नामों के स्मरण के रूप में की गई है, उन महामना का सजीव स्वप्न है और देशवासियों के सम्मुख एक आदर्श है। गंगा वाला बनारस तो उनके संकल्प की फलश्रुति ही है। वे संकल्पों में शिव रही या शिव संकल्प की धनी रही, वैष्णव तीर्थ नाथद्वारा में भी उनका बनवाया कुंड है जो अहिल्या कुंड के नाम से ही जाना जाता है- वे जहां पधारी वहां वरुणदेव प्रसन्न हुए और उनके संकल्प की पूर्ति के लिए बारहों मास जलदायक रहे। (जल और भारतीय संस्कृति : श्रीकृष्ण जुगनू) आज उनके अवतरण दिवस पर उनके संकल्प की सिद्धि याद आ रही है, कितने बरस पहले उन्होंने जान लिया था कि " नहीं जलसेवा सम कछु काजा। महत काज एहि सरब समाजा।" हां, यदि आपको भी उनके जलसेवा के स्मारकों की जानकारी है तो जरूर शेयर कीजियेगा । जय-जय। - श्रीकृष्ण जुगनू

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