बहादूरशहा जफर कि कहाणी
लेखन ::आशिष माळी
शहजादा मिर्झा जवान बख्त (डावी कडे) आणि मिर्झा शाह अब्बास(उजवीकडे) हा रंगून मध्येच 1884 आणि दुसरा 1900 मध्ये ला मरण पावला
उमर दाराज मांगकर लये थें चार दीन,
दो आराजू मे कट गये , दो ईंतजार जर मे
त्याच्या मृत्यूची लेख
लगता नहीं है जी मेरा उजङे दयार में,
किसकी बनी है आलमे नापायदार में.
इन हसरतों से कहदो कहीं और जाबसें,
इतनी जगेह कहां है दिले दाग़दार में.
उम्रे दराज़ मांग के लाए थे चार दिन,
दो आरज़ू में कट गए दो इंतेज़ार में.
कितना है बदनसीब ज़फ़र दफ़्नके लिए
दोगज़ ज़मीन भी नमिली कूए यारमे
मिर्ज़ा मुग़ल झहीर उद्दीन , मिर्जा खज्र सुल्तान बहादूर या दोघांना 1857 मध्ये ब्रिटिशनी नागडे करून मारले
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