पोस्तसांभार ::देवंद्र देशमुख
१८५७ च्या उठावातील झाशीची राणी लक्ष्मीबाई मॄत्यु समयी त्यांच्या सोबत असलेले रामचंद्र रावजी देशमुख यांच्या बद्दल सविस्तर माहिती
अमळनेरला १८१८ ला भुईकोट किल्ला च्या बोरीनदी घ्या पात्रात इंग़जा विरुद्ध युध्य झाले त्या युद्धात रामचंद्र राव चार पराभव झाला तेथुन पळ काढुन ते ग्वाल्हेर ला गेले दौलतराव शिंदे यांच्या कडे परंतु त्यांचे इग़जाशी असलेले संबंधांमुळे ते बिठुरला मोरोपंत तांबे यांच्या कडे गेले त्यांचे पारोळा येथे तांबेची जहागीर आणि भोईकोट किल्ल्याची होती त्यामुळे त्यांचे जुने संबंध होते पुढे झांशी ला लग्नामुळे राणी लक्ष्मीबाई यांच्या सोबत संरक्षणा साठी पाठवले
1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ तलवार उठाने वाली झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई के दत्तक पुत्र दामोदर राव 8-10 साल की उम्र में ही इंदौर आ गए थे। तब से ही उनका परिवार इंदौर में रह रहा है, लेकिन ज्यादातर लोग इस बात से अनभिज्ञ हैं। इतिहासकारों के मुताबिक लक्ष्मीबाई दामोदर राव को पीठ से बांध कर चार अप्रैल 1858 को झांसी से कूच कर गई थीं।ग्वालियर में ही एक गंगादास नामक व्यक्ति की कुटिया थी, जहां रानी का देहांत हुआ था। उनका संस्कार गुल मोहम्मद व रामचन्द्र राव देशमुख ने बाबा की कुटिया पर बटोरी हुई घास-फूस और लकड़ियों से किया था। देशमुख ने उन पर गंगाजली से गंगाजल डाला था। इस दौरान 5-6 लोग थे। पता चलने पर अंगरेज़ एक दिन बाद 18 जून को यहां पहुंचे थे। पुष्टि के लिए 18 जून को ही अंग्रेज़ों ने उनके निधन का दिन माना।18 जून 1858 को युद्ध के दौरान ग्वालियर में रानी शहीद हुई। रानी के विश्वासपात्र सरदार रामचंद्र राव देशमुख ही दामोदार राव को अपने साथ लेकर ललितपुर के जंगलों में भटकते रहे।इतिहासकार ओम शंकर असर के अनुसार, रानी लक्ष्मीबाई दामोदर राव को पीठ से बांध कर चार अप्रैल 1858 को झांसी से कूच कर गई थीं। 18 जून 1858 को तक यह बालक सोता-जागता रहा। युद्ध के अंतिम दिनों में तेज होती लड़ाई के बीच महारानी ने अपने विश्वास पात्र सरदार रामचंद्र राव देशमुख को दामोदर राव की जिम्मेदारी सौंप दी। दो वर्षों तक वह दामोदर को अपने साथ लिए रहे। वह दामोदर राव को लेकर ललितपुर जिले के जंगलों में भटके। jhansi-ki-rani-family दामोदर राव के दल के सदस्य भेष बदलकर आटा, दाल, नमक घी लाते थे। दामोदर के दल में कुछ उंट और घोड़े थे। इनमें से कुछ घोड़े देने की शर्त पर उन्हें शरण मिलती थी। शिवपुरी के पास जिला पाटन में एक नदी के पास छिपे दामोदर राव को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर उन्हें मई, 1860 में अंग्रेजों ने इंदौर भेज दिया गया था।इंदौर के रेजिडेंट रिचमंड शेक्सपियर ने दामोदर राव का लालन-पालन मीर मुंशी पंडित धर्मनारायण को सौंप दिया। दामोदर राव को सिर्फ 150 रुपए महीने पेंशन राशि दी जाती थी।इंदौर में रहते हुए दामोदार राव का विवाह हुआ औऱ उनके एक पुत्र भी हुआ। पुत्र का नाम लक्ष्मणराव था।दामोदर राव के दिन बहुत गरीबी और गुमनामी में बीते। इसके बाद भी अंग्रेज उन पर कड़ी निगरानी रखते थे। दामोदर राव के साथ उनके बेटे लक्ष्मणराव को भी इंदौर से बाहर जाने की इजाजत नहीं थी। वे घर के बाहर निकलते थे तो अंग्रेज सैनिक तुरंत चौकन्ने हो जाते थे. बताया जाता है कि 28 मई 1906 को दामोदार राव का इंदौर में ही निधन हो गया। उनके बेटे लक्ष्मणराव के कई पुत्र हुए, लेकिन एक प्रकार से पूरा परिवार गुमनामी के अंधेरे में रहा।उनके वंशजों में प्रपौत्र अरुणराव झाँसीवाला, उनकी धर्मपत्नी वैशाली, बेटे योगेश व बहू प्रीति धन्वंतरिनगर में रह रहे हैं। अरुण कहते हैं लक्ष्मीबाई के दत्तक पुत्र दामोदर नेवाळकर 1860 में इंदौर आए थे। तब वे 8-10 साल के थे। तभी से हमारा परिवार यहां रह रहा है।उनके पुत्र श्रीमंत लक्ष्मणराव तीसरी पीढ़ी कहलाए, चौथी पीढ़ी के थे श्रीमंत कृष्णराव, जो मेरे पिताजी थे और अब मैं पांचवीं पीढ़ी का हूं। बलिदान दिवस पर हमारा परिवार उनको पुष्पांजलि अर्पित करता है। उनकी यादगार के तौर पर हमारे पास बड़ों द्वारा सुनी बातें व श्रीमंत दामोदर द्वारा बनाई गई रानी लक्ष्मीबाई की तस्वीर है।वे अच्छे चित्रकार थे। बचपन में माँ की जहन में बसी तस्वीर को उन्होंने कागज पर उकेरा था। पिताजी व दादाजी बताते थे झालावड़ पाटन, राजस्थान के राजा पृथ्वीसिंह चौहान ने हेमिल्टन को सिफारिश पत्र भेजकर कहा था ये लक्ष्मीबाई के दत्तक पुत्र हैं, इनका संरक्षण किया जाए। तब उन्हें रेसीडेंसी में संरक्षकों के बीच रखा गया था। उस वक्त उन्हें कुछ राशि भी मिलती थी, जो तीसरी पीढ़ी तक आते-आते कम होती गई और फिर मिलना बंद हो गई। मैं म.प्र विद्युत मंडल धार से 2002 में सेवानिवृत्त हुआ। बेटा योगेश साफ्टवेयर इंजीनियर है। समाज के लिए जितना हो सकता है, उतना सहयोग करते हैं। दामोदर राव की जिंदगी को लेकर बहुत कम पढ़ने को मिलता है। वह भले ही रानी के दत्तक पुत्र थे, लेकिन रानी के नहीं रहने पर अंग्रेजों ने उनका ये हाल कर दिया था कि उन्हें भीख मांगकर जिंदगी गुजारनी पड़ी थी। जबकि वह 25 लाख की रियासत के मालिक थे।विश्व इतिहास की ताकतवर महिलाओं में शुमार रानी लक्ष्मी बाई के बेटे का जिक्र इतिहास में भी बहुत कम हुआ है। यही वजह है कि यह असलियत लोगों के सामने नहीं आ पाई। कहा तो यहां तक जाता है कि रानी के शहीद होने के बाद उन्हें जंगलों में भी भटकना पड़ा था और उन्होंने बेहद गरीबी में अपना जीवन बिताया। अंग्रेजों की उनपर हर पल नजर रहती थीं। कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने भी रानी पर खूब कलम चलाई, लेकिन यह कलम दामोदर राव के बारे में बताने के पहले ही रुक गई। दामोदर के बारे में कहा जाता है कि इंदौर के ब्राह्मण परिवार ने उनका लालन-पालन किया था। जिस दत्तक पुत्र दामोदार राव को झांसी का राजा बनाने के लिए रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी। उनकी मौत के बाद वह इंदौर में गुमनामी की जिंदगी जिया। यही नहीं दामोदार राव के परिवार को लोगों से उधार मांगकर गुजारा करना पड़ा। वरिष्ठ पत्रकार सोमदत्त शास्त्री के फेसबुक वॉल से।
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