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Friday, 15 March 2019

झासी का मराठा महाराजा गंगाधर राव नेवालकर जीवन परिचय व् इतिहास | भाग ४



झासी का मराठा महाराजा गंगाधर राव नेवालकर जीवन परिचय व् इतिहास |
भाग ४
गंगाधर राव और तीर्थयात्रा
एक बार राज्य और प्रशासन की व्यवस्था सुनिश्चित करने के बाद महाराज गंगाधर राव ने तीर्थ यात्रा पर जाने का सोचा ,इसके लिए उन्होंने गवर्नर जनरल को सूचित किया. ब्रिटिश सरकार ने उनके लिए यात्रा की व्यवस्था की उन्होंने अपनी पत्नी के साथ माघ शुक्ल सप्तमी को 1907 में तीर्थ यात्रा शुरू की. इस धार्मिक यात्रा में वो गया,प्रयाग होते हुए वाराणसी पहुंचे. वाराणसी रानी लक्ष्मीबाई का जन्म स्थान था,यहाँ पहुंचकर महाराज बहुत प्रसन्न हुए,इस जगह लक्ष्मी बाई और उनके पति ने बहुत सी प्रार्थनाए की,दान किया और अन्य धार्मिक कार्य किये. फिर वो झांसी लौट आये और यहाँ उन्होंने सफल धार्मिक यात्रा के लिए बड़ा उत्सव किया.
गंगाधर राव का स्वाभिमान और ब्रिटिश शासकों की उनमें श्रद्धा
गंगाधर के धार्मिक यात्रा के दौरा एक जगह वारणसी में ब्रिटिश अधिकारी उन्हें पहचान नही पाया था, जिस पर स्वाभिमानी गंगाधर उस पर बहत क्रोधित हुए तब उस अधिकारी ने उनसे क्षमा मांगी,और राजा ने उन्हें माफ़ भी कर दिया.लेकिन एक अन्य जगह एक बंगाली व्यक्ति राजेंद्र बाबू ने भी जब उन्हें नहीं पहचान तो राजा ने उन्हें दण्डित किया जिसकी शिकायत राजेन्द्र बाबू ने ब्रिटिश अधिकारियों से की जिसके जवाब में उस अधिकारी ने कहा की गंगाधार राव एक बड़े राजा हैं, उनका सम्मान करना सबका कर्तव्य हैं ,तुम यदि उनका सम्मान नहीं करते तो दंड मिलना स्वाभाविक हैं. इस तरह राजा गंगाधर राव के स्वाभिमानी स्वभाव की इज्जत अंग्रेज भी करते थे. उनके इस स्वभाव से जुडी एक और रोचक बात हैं की जब झांसी में ब्रिटिश सैन्य टुकड़ी रखने पर उन्होंने सहमती दी थी तब उन्होंने अंग्रेजो के सामने एक शर्त भी रखी थी कि हर साल दशहरा के दिन ये ब्रिटिश सैनिक उन्हें सलामी देंगे,और एक बार दशहरा के दिन रविवार की छुट्टी होने के कारण ब्रिटिश सैन्य अधिकारी ने ये सूचना भिजवाई कि वो परेड में उपस्थित नहीं हो सकेंगे,तब राजा गंगाधर राव तुरंत सैनिको के स्थल पर पहुंचे और उनसे स्पष्टीकरण माँगा,ब्रिटिश अधिकारीयों को इसके लिए क्षमा मांगनी पड़ी.इससे गंगाधर राव के प्रभुत्व का पता चलता हैं.

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