झासी का मराठा महाराजा गंगाधर राव नेवालकर जीवन परिचय व् इतिहास |
भाग ६
गंगाधर राव और उत्तराधिकारी की चिंता (New king of Jhansi)
उनके अंतिम क्षणों में जब उनसे प्रधान-मंत्री नरसिम्हा राव ने राज्य के
उतराधिकारी के बारे में पूछा, तब उन्होंने कहा कि हालांकि उन्हें लगता हैं
की वो अब भी ठीक हो जायेंगे, लेकिन अपने धर्म और कर्तव्य को ध्यान में रखते
हुए वो एक पुत्र गोद लेना चाहते हैं. हमारे परिवार में वासुदेव नेवालकर के
एक पुत्र हैं जिसका नाम आनंद राव हैं ,मैं उसे ही अपना दत्तक पुत्र बनाना
चाहता हूँ. आनंद राव उस समय मात्र 5 साल के बालक थे. रानी लक्ष्मीबाई भी
इसके लिए तैयार हो गयी,इसके लिए एक दिन सुनिशिचित किया गया उस दिन पंडित
विनायक राव ने गोद लेने की सभी प्रक्रियाए धार्मिक अनुष्ठानों के साथ पूरी
की. गोद लेने के बाद आनंद राव का नाम बदलकर दामोदर गंगाधर राव रखा गया. गोद
लेने के पारम्परिक अनुष्ठान में राज्य के सभी गणमान्य व्यक्ति और
बुंदेलखंड के ब्रिटिश राजनायिक मेजर एलिस और लोकल ब्रिटिश आर्मी के अधिकारी
कैप्टेन मार्टिन मौजुद थे.
गंगाधर का ब्रिटिश सरकार को लिखा अन्तिम पत्र (Gangadhar Rao’s last letter)
जब महाराजा ने गोद लेने की सभी राजकीय प्रक्रियाएं पूरी कर ली तब उन्होंने खुद ब्रिटिश सरकार को एक पत्र लिखवाया कि “ब्रिटिश सरकार के आने के पहले मेरे पूर्वजों द्वारा बुंदेलखंड के लिए की गयी सेवाओं के बारे में पूरा यूरोप जानता हैं. सभी राजनितिक गणनायक जानते हैं कि मैंने सरकार के आदेशों का कितनी ईमानदारी से पालन किया है. अब मुझे डर हैं की मैं असाध्य बिमारी से ग्रस्त हूँ,ऐसे में मेरा वंश पूरी तरह ख़त्म होने की कगार पर हैं. अब तक मैंने हमेशा ब्रिटिश सरकार को अपनी सेवाए दी हैं और सरकार ने भी मेरे हितों का ध्यान रखा हैं, इसलिए मैं सरकार को ये सूचित करना चाहता हूँ कि मैंने जिस 5 साल के बालक को अपना दत्तक पुत्र घोषित किया हैं उसका नाम आनद राव हैं लेकिन वो अब से दामोदर गंगाधर राव के नाम से जाना जायेगा. यह बच्चा हमारे परिवार का ही सदस्य हैं,और रिश्तेदारी में मेरा पौत्र हैं. मुझे उम्मीद है कि प्रभु की कृपा और सरकार की देखभाल से मैं जल्द ही स्वस्थ हो जाऊँगा, और मेरी उम्र को देखते हुए ये सम्भव हैं की भविष्य में मुझे पुत्र रत्न की प्राप्ति हो, और यदि ऐसा होता हैं तो उस समय पूरा मुद्दा वापिस से सोचा जाएगा, लेकिन यदि मैं अभी इस बीमारी से नहीं बच पाऊं तो तो मुझे उम्मीद हैं की सरकार मेरे इस छोटे से बालक की सुरक्षा करेगी और इसके लिए मेरी अब तक की गयी सेवाओं का ध्यान रखेगी. जब तक मेरी पत्नी जीवित हैं वह इस राज्य और मेरे पुत्र की संरक्षक होगी. वह इस पूरे राज्य की प्रशासक होगी इसलिए आप सुनिश्चित करें कि मेरे जाने के बाद मेरी पत्नी को झांसी के शासन करते हुए कोई समस्या का सामना ना करना पड़े.”
पूरा पत्र लिखवाने के बाद महाराज ने ये पत्र मेजर एलिस को सौंपा और उन्हें बार-बार ये याद दिलाया कि उनके राज्य को उनके जाने के बाद भी अभी तक की परम्परा अनुसार ही चलने दिया जाए. इस कारण गंगाधर जब मेजर को ये पत्र थमा रहे थे तब भावनाओं से उनका गला भर आया. मेजर ने विनम्रता के साथ राजा को भरोसा दिलाने की कोशिश की “महाराज आपका पत्र सरकार को देने बाद मैं आपकी बात उन तक पहुंचाने की पूरी कोशिश करूँगा”
गंगाधर का ब्रिटिश सरकार को लिखा अन्तिम पत्र (Gangadhar Rao’s last letter)
जब महाराजा ने गोद लेने की सभी राजकीय प्रक्रियाएं पूरी कर ली तब उन्होंने खुद ब्रिटिश सरकार को एक पत्र लिखवाया कि “ब्रिटिश सरकार के आने के पहले मेरे पूर्वजों द्वारा बुंदेलखंड के लिए की गयी सेवाओं के बारे में पूरा यूरोप जानता हैं. सभी राजनितिक गणनायक जानते हैं कि मैंने सरकार के आदेशों का कितनी ईमानदारी से पालन किया है. अब मुझे डर हैं की मैं असाध्य बिमारी से ग्रस्त हूँ,ऐसे में मेरा वंश पूरी तरह ख़त्म होने की कगार पर हैं. अब तक मैंने हमेशा ब्रिटिश सरकार को अपनी सेवाए दी हैं और सरकार ने भी मेरे हितों का ध्यान रखा हैं, इसलिए मैं सरकार को ये सूचित करना चाहता हूँ कि मैंने जिस 5 साल के बालक को अपना दत्तक पुत्र घोषित किया हैं उसका नाम आनद राव हैं लेकिन वो अब से दामोदर गंगाधर राव के नाम से जाना जायेगा. यह बच्चा हमारे परिवार का ही सदस्य हैं,और रिश्तेदारी में मेरा पौत्र हैं. मुझे उम्मीद है कि प्रभु की कृपा और सरकार की देखभाल से मैं जल्द ही स्वस्थ हो जाऊँगा, और मेरी उम्र को देखते हुए ये सम्भव हैं की भविष्य में मुझे पुत्र रत्न की प्राप्ति हो, और यदि ऐसा होता हैं तो उस समय पूरा मुद्दा वापिस से सोचा जाएगा, लेकिन यदि मैं अभी इस बीमारी से नहीं बच पाऊं तो तो मुझे उम्मीद हैं की सरकार मेरे इस छोटे से बालक की सुरक्षा करेगी और इसके लिए मेरी अब तक की गयी सेवाओं का ध्यान रखेगी. जब तक मेरी पत्नी जीवित हैं वह इस राज्य और मेरे पुत्र की संरक्षक होगी. वह इस पूरे राज्य की प्रशासक होगी इसलिए आप सुनिश्चित करें कि मेरे जाने के बाद मेरी पत्नी को झांसी के शासन करते हुए कोई समस्या का सामना ना करना पड़े.”
पूरा पत्र लिखवाने के बाद महाराज ने ये पत्र मेजर एलिस को सौंपा और उन्हें बार-बार ये याद दिलाया कि उनके राज्य को उनके जाने के बाद भी अभी तक की परम्परा अनुसार ही चलने दिया जाए. इस कारण गंगाधर जब मेजर को ये पत्र थमा रहे थे तब भावनाओं से उनका गला भर आया. मेजर ने विनम्रता के साथ राजा को भरोसा दिलाने की कोशिश की “महाराज आपका पत्र सरकार को देने बाद मैं आपकी बात उन तक पहुंचाने की पूरी कोशिश करूँगा”
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