झाँसी की रानी के वंशज और पुत्र दामोदर राव की मार्मिक कहानी
भाग १
मन में कल्पना कीजिए, सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम का भीषण युद्ध चल रहा है झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई अपने दत्तक पुत्र दामोदर राव को पीठ से बाँधें हुए युद्ध कर रही हैं। थके झुंझलाते बच्चे को नींद आ जाती है और वो सो जाता हैं। अचानक तोप का एक गोला महारानी के घोड़े से कुछ दूर गिरता है, जोड़ से आवाज होती है और बच्चे की नींद टूट जाती हैं।
भाग १
मन में कल्पना कीजिए, सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम का भीषण युद्ध चल रहा है झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई अपने दत्तक पुत्र दामोदर राव को पीठ से बाँधें हुए युद्ध कर रही हैं। थके झुंझलाते बच्चे को नींद आ जाती है और वो सो जाता हैं। अचानक तोप का एक गोला महारानी के घोड़े से कुछ दूर गिरता है, जोड़ से आवाज होती है और बच्चे की नींद टूट जाती हैं।
1857 के युद्ध की कहानी आप सब जानते है, अंत समय में दामोदर राव को
महारानी अपने विश्वासपात्र सरदार रामचंद्र राव देशमुख को सौंप कर धरती माँ
से विदा ले लेती हैं।
दामोदर राव से जुड़ी कुछ जानकारी, कहानी तथा उनके वंशज के बारे में।
दामोदर राव जिनका असली नाम आनंद राव था की कहानी बड़ी दुखदायी हैं। रानी के मृत्यु के बाद उन्हें काफी कष्ट सहना पड़ा, यहां तक की भिक्षा मांग कर समय काटना पड़ा। दानी भिखारी बन गया, जिसने कभी सूखी रोटी का नाम नही सुना उसे सूखी रोटी खानी पड़ गयी। कोमल शैय्या की जगह पथरीली मिट्टी पर खुले आसमान के नीचे सोना पड़ा। कितना कष्ट भरा जीवन रहा होगा आप सोच सकते हैं। झाँसी की रानी के वंशज आज भी जीवित है किन्तु गुमनामी के अंधेरे में।
आनंद राव को क्यों गोद लिया गया
गंगाधर राव के साथ व्याही जाने के बाद लक्ष्मीबाई ने 1851 में एक पुत्र को जन्म दिया किन्तु दुर्भाग्यवश चार माह बाद ही उसकी असमय मृत्यु हो गयी। पुत्र के मृत्यु पर्यन्त झाँसी के राजा गंगाधर राव भी बीमार रहने लगे। जिसके कारण शीघ्र ही झाँसी सिंहासन के लिए उत्तराधिकारी की आवश्यकता महसूस होने लगी क्योंकि उन दिनों अंग्रेजों की एक विस्तारवादी नीति थी- राज्य हड़प की नीति(Doctrine of Lapse) जिसके अनुसार यदि किसी राज्य का उत्तराधिकारी न हो अथवा राजा के निःसंतान होने पर उसका राज्य ब्रितानी साम्राज्य का हिस्सा बन जाता था।
दामोदर राव से जुड़ी कुछ जानकारी, कहानी तथा उनके वंशज के बारे में।
दामोदर राव जिनका असली नाम आनंद राव था की कहानी बड़ी दुखदायी हैं। रानी के मृत्यु के बाद उन्हें काफी कष्ट सहना पड़ा, यहां तक की भिक्षा मांग कर समय काटना पड़ा। दानी भिखारी बन गया, जिसने कभी सूखी रोटी का नाम नही सुना उसे सूखी रोटी खानी पड़ गयी। कोमल शैय्या की जगह पथरीली मिट्टी पर खुले आसमान के नीचे सोना पड़ा। कितना कष्ट भरा जीवन रहा होगा आप सोच सकते हैं। झाँसी की रानी के वंशज आज भी जीवित है किन्तु गुमनामी के अंधेरे में।
आनंद राव को क्यों गोद लिया गया
गंगाधर राव के साथ व्याही जाने के बाद लक्ष्मीबाई ने 1851 में एक पुत्र को जन्म दिया किन्तु दुर्भाग्यवश चार माह बाद ही उसकी असमय मृत्यु हो गयी। पुत्र के मृत्यु पर्यन्त झाँसी के राजा गंगाधर राव भी बीमार रहने लगे। जिसके कारण शीघ्र ही झाँसी सिंहासन के लिए उत्तराधिकारी की आवश्यकता महसूस होने लगी क्योंकि उन दिनों अंग्रेजों की एक विस्तारवादी नीति थी- राज्य हड़प की नीति(Doctrine of Lapse) जिसके अनुसार यदि किसी राज्य का उत्तराधिकारी न हो अथवा राजा के निःसंतान होने पर उसका राज्य ब्रितानी साम्राज्य का हिस्सा बन जाता था।
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