झाँसी की रानी के वंशज और पुत्र दामोदर राव की मार्मिक कहानी
भाग २
रानी लक्ष्मीबाई के बेटे के निधन के बाद 19 नवंबर 1853 को पांच वर्षीय आनंद राव को झाँसी के उत्तराधिकारी के रूप में गोद लिया गया। लेकिन ब्रिटिश सरकार ने इसे नहीं माना और झाँसी 1853 में अंग्रेजी साम्राज्य का हिस्सा बन गयी।
भाग २
रानी लक्ष्मीबाई के बेटे के निधन के बाद 19 नवंबर 1853 को पांच वर्षीय आनंद राव को झाँसी के उत्तराधिकारी के रूप में गोद लिया गया। लेकिन ब्रिटिश सरकार ने इसे नहीं माना और झाँसी 1853 में अंग्रेजी साम्राज्य का हिस्सा बन गयी।
आनंद राव जो रानी के दत्तक
पुत्र दामोदर राव नेवालकर के नाम से जाने जाते है, का जन्म झाँसी के राजा
गंगाधर राव नेवालकर के खानदान में 1848 ई० में हुआ था। आनंद राव के
वास्तविक पिता का नाम वासुदेव राव नेवालकर था। उनके जन्म के समय राज
ज्योतिषी ने उनके भाग्य में ‘राज योग’ होने तथा उनके राजा बनने की
भविष्यवाणी की थीं।
रानी की मृत्यु के बाद उनके पुत्र का क्या हुआ
अंग्रेजों के राज्य हड़पने की नीति, घोर अत्याचारों तथा शोषण से त्रस्त समस्त भारत 1857 में अंग्रेजों को देश से भगाने के लिए कमर कस ली तथा भारी विरोध के साथ प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल बज उठा। इस युद्ध में वीरांगना झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई भी अपने सहयोगियों तथा सैनिकों के साथ धरती माँ को अंग्रेजों से मुक्त करने के लिए अपना श्रेष्ठतम सहयोग दे रही थी। उन्होंने कई मोर्चों पर अंग्रेजों को परास्त किया।
युद्ध के दौरान जब अंग्रेजी सेना झाँसी के किले में प्रविष्ट हो गयी तब 4 अप्रैल 1858 को रात में रानी लक्ष्मीबाई, दामोदर राव को अपने पीठ पर बांधकर अपने चार सहयोगियों के साथ वहां से कुच कर गयी।
24 घंटे में 93 मील की दूरी तय करने के बाद वे सब काल्पी पहुँचे जहां उन्हें नाना साहब तथा तात्या टोपे मिले। वहां से वे सब ग्वालियर की तरफ निकले। अपने अंतिम दिनों में तेज होती लड़ाई के बीच महारानी ने अपने विश्वास पात्र सरदार रामचंद्र राव देशमुख को दामोदर राव की जिम्मेदारी सौंप दी।
ग्वालियर(फूलबाग) के पास युद्ध करते हुए 18 जून 1858 को रानी ने अपना बलिदान दे दिया।
महारानी के मृत्यु के पश्चात रामचंद्र राव देशमुख दो वर्षों तक दामोदर को अपने साथ लिए ललितपुर जिले के जंगलों में भटके।
रानी की मृत्यु के बाद उनके पुत्र का क्या हुआ
अंग्रेजों के राज्य हड़पने की नीति, घोर अत्याचारों तथा शोषण से त्रस्त समस्त भारत 1857 में अंग्रेजों को देश से भगाने के लिए कमर कस ली तथा भारी विरोध के साथ प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल बज उठा। इस युद्ध में वीरांगना झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई भी अपने सहयोगियों तथा सैनिकों के साथ धरती माँ को अंग्रेजों से मुक्त करने के लिए अपना श्रेष्ठतम सहयोग दे रही थी। उन्होंने कई मोर्चों पर अंग्रेजों को परास्त किया।
युद्ध के दौरान जब अंग्रेजी सेना झाँसी के किले में प्रविष्ट हो गयी तब 4 अप्रैल 1858 को रात में रानी लक्ष्मीबाई, दामोदर राव को अपने पीठ पर बांधकर अपने चार सहयोगियों के साथ वहां से कुच कर गयी।
24 घंटे में 93 मील की दूरी तय करने के बाद वे सब काल्पी पहुँचे जहां उन्हें नाना साहब तथा तात्या टोपे मिले। वहां से वे सब ग्वालियर की तरफ निकले। अपने अंतिम दिनों में तेज होती लड़ाई के बीच महारानी ने अपने विश्वास पात्र सरदार रामचंद्र राव देशमुख को दामोदर राव की जिम्मेदारी सौंप दी।
ग्वालियर(फूलबाग) के पास युद्ध करते हुए 18 जून 1858 को रानी ने अपना बलिदान दे दिया।
महारानी के मृत्यु के पश्चात रामचंद्र राव देशमुख दो वर्षों तक दामोदर को अपने साथ लिए ललितपुर जिले के जंगलों में भटके।
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