गोहद का किला और मराठा वीरो का पराक्रम
(मराठा वीरो कि अनसुनी कहाणी )
भाग २
मराठा सरदार महादजी शितोले
स न 1703 में राणा भीम सिंह गोहद की गद्दी पर बैठे उस समय तक मुगलों एवं
जाटों के सम्बन्ध बिगड़ चुके थे। इसी कारण मुगलों के बफादार अटेर के
भदौरिया राजा गोपाल सिंह ने गोहद पर आक्रमण कर अधिपत्य कर लिया।
इसके पश्चात पेशवा के प्रति स्वामिभक्ति के फलस्वरूप सन 1739 ई में पुनः गोहद प्राप्त हो सका।किन्तु शीघ्र ही उसका मराठाओं से ग्वालियर किले को लेकर विवाद हो गया। सन 1755 ई में मराठा सरदार महादजी शितोले ने ग्वालियर दुर्ग पर आक्रमण कर दिया भीमसिंह वीरतापूर्वक लड़ा किन्तु गंभीर रूप से घायल हो गया।
तीन दिन बाद उसका देहांत हो गया उसकी मुस्लिम प्रेयसी नर्तकी रोशन उसके शव के साथ सती हो गई। इस प्रकार अति महत्वाकांक्षा के चलते भीमसिंह मराठाओ के उपकार को भूल गया जिसकी कीमत उसने अपनी जान देकर चुकाई।
भीमसिंह के बाद राणा गिरधर प्रताप सिंह सन 1755 में अंतिम महीनों में गोहद की गद्दी पर बैठा पर वह 10 माह ही शासन कर सका। सन 1757 ई में प्रतापी छत्र सिंह गोहद का राजा हुआ।
इसके पश्चात पेशवा के प्रति स्वामिभक्ति के फलस्वरूप सन 1739 ई में पुनः गोहद प्राप्त हो सका।किन्तु शीघ्र ही उसका मराठाओं से ग्वालियर किले को लेकर विवाद हो गया। सन 1755 ई में मराठा सरदार महादजी शितोले ने ग्वालियर दुर्ग पर आक्रमण कर दिया भीमसिंह वीरतापूर्वक लड़ा किन्तु गंभीर रूप से घायल हो गया।
तीन दिन बाद उसका देहांत हो गया उसकी मुस्लिम प्रेयसी नर्तकी रोशन उसके शव के साथ सती हो गई। इस प्रकार अति महत्वाकांक्षा के चलते भीमसिंह मराठाओ के उपकार को भूल गया जिसकी कीमत उसने अपनी जान देकर चुकाई।
भीमसिंह के बाद राणा गिरधर प्रताप सिंह सन 1755 में अंतिम महीनों में गोहद की गद्दी पर बैठा पर वह 10 माह ही शासन कर सका। सन 1757 ई में प्रतापी छत्र सिंह गोहद का राजा हुआ।
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