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Tuesday, 23 July 2019

गुलाम गौस खान


  Gulam Gaus Kha`s Tomb-Jhasi fort

गुलाम गौस खान का जीवन परिचय

गुलाम गौस खान का जीवन परिचय (Gulam gaus Khan Biography in Hindi)

वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई एवं उनकी वीरता के बारे में तो सभी लोग जानते हैं, लेकिन क्या आप जानते है कि जब अंग्रेजों ने झाँसी एवं झाँसी की रानी के किले में कब्जा करने के लिए आक्रमण किया था, तब किले की एवं झाँसी की रक्षा के लिए रानी लक्ष्मीबाई ने विद्रोहियों की एक सेना को इकठ्ठा किया जिसमें महिलाएं भी शामिल थीं. गुलाम गौस खान उसी सेना के एक प्रमुख तोपची एवं कमांडर थे. जिन्होंने अंग्रेजों को किले में घुसने से रोकने में अहम भूमिका निभाई थी.


गुलाम गौस खान जन्म एवं परिचय (Birth and Introduction)
गुलाम गौस खान का जन्म उत्तरप्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ था और वे वहीं के रहने वाले थे. जहाँ एक तरफ भारत के कई राजा अंग्रेजों के साथ मिले हुए थे, उस समय रानी लक्ष्मीबाई ही थी जिन्होंने अपने देश एवं अपनी जन्मभूमि की रक्षा के लिए अंग्रेजों का सामना किया था, उसमे उनका साथ गुलाम गौस खान एवं खुदाबक्श जैसे मुसलमान योद्धाओं ने दिया था. रानी लक्ष्मीबाई के सेना प्रमुखों में गुलाम गौस खान के अलावा दोस्त खान, खुदाबक्श, सुंदर – मुन्दर, काशी बाई, लाला भाऊ बक्शी, मोती बाई, दीवान रघुनाथ सिंह और दीवान जवाहर सिंह जैसे वीर योद्धा भी थे, जिन्होंने झाँसी की लड़ाई में रानी का पूरा समर्थन किया था.

गुलाम गौस खान की लड़ाई में भूमिका (Role in Struggle)
झाँसी की लड़ाई के दौरान अंग्रेजों को रोकने के लिए रानी की सेना लड़ती रही और सेना ने अंग्रेजों को 2 सप्ताह तक रोक कर रखा था. जिसमे तोपची गुलाम गौस खान प्रमुख थे. जिन्होंने तोपों से अंग्रेजों को परेशान कर दिया था. अंग्रेज अपने इरादों में नाकाम हो रहे थे. किन्तु जब अंग्रेजों ने झाँसी के एक विद्रोही के साथ मिलकर किले में घुसपैठ करनी शुरू की, तब गुलाम गौस खान, खुदाबक्श एवं मोती बाई तीनों ने ही मिलकर उनका सामना किया और रानी को किले से बाहर निकालने में मदद की, तभी रानी सही सलामत ग्वालियर तक पहुंच पाई.


गुलाम गौस खान की मृत्यु एवं समाधि (Death and Grave)
गुलाम गौस खान, मोती बाई एवं खुदाबक्श तीनों ही लड़ाई के दौरान अंग्रेजों का सामना करते – करते 4 जून 1858 को शहीद हो गए. झाँसी के किले के अंदर ही गुलाम गौस खान की कब्र बनाई गई, जहाँ लोग आज भी उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर उन्हें याद करने के लिए जाते हैं.
अतः एक ऐसे योद्धा जिन्होंने मुसलमान होते हुए भी एक मराठा रानी का साथ दिया, उन्हें एक मिसाल के रूप में याद किया जाना चाहिए.

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