कु छ याद इन्हें भी करलो....
जज़्बे ने बनाया अमर........
---------------------------------------------------------------
जिस वक्त हम लिखेंगे, शहीदों की दास्तां
तारीख की रगों में, लहू दौड़ जाएगा
---------------------------------------------------------------
जी हां यह शेर निम्बाहेड़ा के एक आजादी के दीवाने पर एक दम सटीक बैठता है जिसने स्वामी भक्ति की बेमिसाल नजीर पेश करने के साथ मातृभूमि की रक्षा एंव देशप्रेम की भावना के चलते ऐसी लड़ाई लड़ी कि दुश्मनों के दंात खट्टे हो गये, इस के लिये उन्होने जान की परवाह नही की और देश की स्वतन्त्रता के लिये शहीद हुए सेनानियों में शामिल हो गये।
में आज याद कर रहा हुं ऐसे आजादी के दीवाने, निम्बाहेड़ा की मिट्टी में रचे बसे पढ़े लिखे,
बेड़ा बक्षी निवासी गुलाम गौस खां को जिन्हें गुलामी से सख्त नफरत थी, देश भक्ति का ज़ज्बा उनमें कूट कूट कर भरा था।
टोंक रियासत के पहले नवाब अमीरूद्दौला (1817 से 1834) के शासन काल में अफगानिस्तान से एक बक्षी परिवार निम्बाहेड़ा में आकर बसा, इस परिवार के दो भाई मो. मोहीउद्दीन व गुलाम गौस खंा शामिल थे, इन्ही के पाचवें वंशज एडवोकेट फहीम खान बक्षी ने बताया की ये दोनो जांबाज सिपाही थे तथा युद्धकलां, तोप निर्माण एवं तोप चालन में सिहस्त थे। इस दौरान पूरे देश में अंग्रेजो के विरूद्ध आजादी की लड़ाई पूरे शबाब पर थी। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई एंव अंग्रेजो के बीच भी युद्ध की आखं मिचौली चल रही थी। इसी दौरान झांसी की रानी को एक काबिल तोप निर्माण करने व उसे चलाने वाले की सख्त आवश्यकता थी। इसी दौरान उन्हे पता चला कि निम्बाहेड़ा में गुलाम गौस खां ऐसे ही जांबाज एंव सिद्धहस्त तोपची थे, इस पर उन्हें झांसी की सेनामें मुख्य तोपची के पद पर नियुक्ति का निमत्रंण मिला । गुलाम गौस खां ने झांसी पहुंच कर एक लाजवाब व दूर तक मार करने वाली तोप कडक़ बिजली का निर्माण किया, युद्ध के दौरान इस तोप का प्रमुखता से उपयोग किया जाता रहा, इतिहास में उल्लेख है कि 04 जून 1858 को अगे्रजों के साथ हुए युद्ध में तोप चलाने के दौरान ही वे अंग्रेज सेना के निशाने पर आ गए और शहीद हो गए।
अंग्रेजो से युद्ध के दौरान गुलाम गौस खां ने अपनी कडक़ बिजली तोप से कई बार अंग्रेजो की सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था।
आजादी की जंग में निम्बाहेड़ा के और भी कई वाशिन्दो का बहुत बड़ा योगदान रहा है, ऐसे और भी कई जाबांज योद्धा हुए है जिन्होने आजादी के लिये अपनी जान की परवाह नही करते हुए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया।
आज गुलाम गौस खां को भी आजादी के दीवानों के तौर पर शिद्दत याद किया जाता है, झांसी के किले में उनकी मजार पर आज भी लोग फातेहा पढक़र उनकी आत्मा की शांति की दुआ करते है।
देश में चल रही विभिन्न विपरित परिस्थितियों को देखते हुए सिफ इतना ही कहा जा सकता है कि........
---------------------------------------------------------
वतन को फिर कहीं गिरवी न रख देना वतन वालों,
शहीदो ने बड़ी मुश्किल से ये कर्जें चुकाये है।
जज़्बे ने बनाया अमर........
---------------------------------------------------------------
जिस वक्त हम लिखेंगे, शहीदों की दास्तां
तारीख की रगों में, लहू दौड़ जाएगा
---------------------------------------------------------------
जी हां यह शेर निम्बाहेड़ा के एक आजादी के दीवाने पर एक दम सटीक बैठता है जिसने स्वामी भक्ति की बेमिसाल नजीर पेश करने के साथ मातृभूमि की रक्षा एंव देशप्रेम की भावना के चलते ऐसी लड़ाई लड़ी कि दुश्मनों के दंात खट्टे हो गये, इस के लिये उन्होने जान की परवाह नही की और देश की स्वतन्त्रता के लिये शहीद हुए सेनानियों में शामिल हो गये।
में आज याद कर रहा हुं ऐसे आजादी के दीवाने, निम्बाहेड़ा की मिट्टी में रचे बसे पढ़े लिखे,
बेड़ा बक्षी निवासी गुलाम गौस खां को जिन्हें गुलामी से सख्त नफरत थी, देश भक्ति का ज़ज्बा उनमें कूट कूट कर भरा था।
टोंक रियासत के पहले नवाब अमीरूद्दौला (1817 से 1834) के शासन काल में अफगानिस्तान से एक बक्षी परिवार निम्बाहेड़ा में आकर बसा, इस परिवार के दो भाई मो. मोहीउद्दीन व गुलाम गौस खंा शामिल थे, इन्ही के पाचवें वंशज एडवोकेट फहीम खान बक्षी ने बताया की ये दोनो जांबाज सिपाही थे तथा युद्धकलां, तोप निर्माण एवं तोप चालन में सिहस्त थे। इस दौरान पूरे देश में अंग्रेजो के विरूद्ध आजादी की लड़ाई पूरे शबाब पर थी। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई एंव अंग्रेजो के बीच भी युद्ध की आखं मिचौली चल रही थी। इसी दौरान झांसी की रानी को एक काबिल तोप निर्माण करने व उसे चलाने वाले की सख्त आवश्यकता थी। इसी दौरान उन्हे पता चला कि निम्बाहेड़ा में गुलाम गौस खां ऐसे ही जांबाज एंव सिद्धहस्त तोपची थे, इस पर उन्हें झांसी की सेनामें मुख्य तोपची के पद पर नियुक्ति का निमत्रंण मिला । गुलाम गौस खां ने झांसी पहुंच कर एक लाजवाब व दूर तक मार करने वाली तोप कडक़ बिजली का निर्माण किया, युद्ध के दौरान इस तोप का प्रमुखता से उपयोग किया जाता रहा, इतिहास में उल्लेख है कि 04 जून 1858 को अगे्रजों के साथ हुए युद्ध में तोप चलाने के दौरान ही वे अंग्रेज सेना के निशाने पर आ गए और शहीद हो गए।
अंग्रेजो से युद्ध के दौरान गुलाम गौस खां ने अपनी कडक़ बिजली तोप से कई बार अंग्रेजो की सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था।
आजादी की जंग में निम्बाहेड़ा के और भी कई वाशिन्दो का बहुत बड़ा योगदान रहा है, ऐसे और भी कई जाबांज योद्धा हुए है जिन्होने आजादी के लिये अपनी जान की परवाह नही करते हुए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया।
आज गुलाम गौस खां को भी आजादी के दीवानों के तौर पर शिद्दत याद किया जाता है, झांसी के किले में उनकी मजार पर आज भी लोग फातेहा पढक़र उनकी आत्मा की शांति की दुआ करते है।
देश में चल रही विभिन्न विपरित परिस्थितियों को देखते हुए सिफ इतना ही कहा जा सकता है कि........
---------------------------------------------------------
वतन को फिर कहीं गिरवी न रख देना वतन वालों,
शहीदो ने बड़ी मुश्किल से ये कर्जें चुकाये है।
No comments:
Post a Comment