मकर संक्रांति: पानीपत के युद्ध में मराठों की हार की दास्तान
भाग 2
'डेढ़ लाख चूड़ियां टूटीं'
मशहूर मराठी किताब 'पानीपत' के लेखक विश्वास पाटिल ने एक टीवी इंटरव्यू में कहा था कि चूंकि युद्ध का वह समय दक्षिणायन का समय था, इसलिए सूर्य की किरणें सीधे भूख से बेहाल मराठा सैनिकों और उनके घोड़ों की आंखों पर पड़ रही थीं. दक्षिणायन मकर संक्रांति पर होने वाली एक खगोलीय घटना है, जिसमें सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है. अफसोस की बात है, इस दिन मराठा सेना का विनाश हो गया.
मराठों में किसान और व्यापारी वर्ग के लोग शामिल थे, जो आमतौर पर मानसून और दशहरा (सर्दियों के आने से पहले) तक खेती करते थे. उन्होंने अपने तलवार की धार को तेज किया था, और मातृभूमि की रक्षा के लिए जंग लड़ने निकले पड़े.
इस बीच, अब्दाली ने जिहाद के नाम पर एक बड़ी सेना को इकठ्ठा कर लिया था. उस दिन दोनों सेनाओं में करीब छह घंटे तक युद्ध चला और इसमें एक लाख से ज्यादा (लगभग आधे ) सैनिकों की मृत्यु हो गई.
यहीं से मराठी कहावत- "डेढ़ लाख बांगड्या फुटल्या" या हिंदी में "डेढ़ लाख चूड़ियां टूटीं" की उत्पत्ति हुई, जिसका शाब्दिक अर्थ है कि उस दिन जंग में मारे गए सैनिकों की मौत का मातम मनाने के लिए डेढ़ लाख चूड़ियां टूटीं थीं.
एक मराठा सैनिक का स्केच जो पानीपत में लड़ने के लिए गया था. इतिहास दर्शाता है कि उत्तर भारत के ठंड में पतले कपड़े पहने सैनिकों को कितनी दिक्कतें हुई होंगी
(फोटो: विकिपीडिया)
एक मराठा सैनिक का स्केच जो पानीपत में लड़ने के लिए गया था. इतिहास दर्शाता है कि उत्तर भारत के ठंड में पतले कपड़े पहने सैनिकों को कितनी दिक्कतें हुई होंगी
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