मकर संक्रांति: पानीपत के युद्ध में मराठों की हार की दास्तान
भाग 3
पानीपत की हार से भाषा को हुआ फायदा
- चूंकि यह संक्रांति का दिन था, जो मराठाओं के ऊपर मुसीबतों का पहाड़ बनकर टूटा, इसलिए इस घटना के बाद से किसी व्यक्ति पर होने वाले किसी भी बड़े आपदा को "संक्रांत कोसल्लानी" कहा जाने लगा, मराठी में जिसका मतलब है कि संक्रांति उसके/उनके ऊपर आपदा की तरह टूट पड़ा.
- हालांकि कुछ लोग कहते हैं कि मराठी संस्कृति के मुताबिक, संक्रांति के दिन काले रंग के कपड़े पहने जाते हैं, क्योंकि इस दिन सर्दी के चरम अवस्था पर सूरज की गर्मी को अवशोषित करने का यह एक बेहतर माध्यम होता है. एक और विचारधारा के तहत यह भी तर्क दिया जाता है कि इस दिन 'अशुभ' काला रंग पहनने से बुराइयां, नकारात्मकता और विपदाएं उनसे दूर होंगी, क्योंकि 250 साल से भी ज्यादा समय पहले मकर संक्रांति के दिन ही मराठियों पर विपदाओं का कहर टूटा था.
- वॉटरलू ऑफ इंडिया: पानीपत में शक्तिशाली और अपराजित मराठों का भारी नुकसान भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है. पानीपत की तीसरी जंग 'वॉटरलू' के युद्ध का भारतीय समकक्ष माना जाता है. "पानीपत ज्हाले" कहावत का मतलब है - वो स्थिति, जिसमें एक बड़ा नुकसान हुआ है.
- ब्रिटिश राज के लिए मार्ग प्रशस्त: उस दौर में मराठा फौज शायद केवल उन दो असली भारतीय सैन्य शक्तियों में से एक थी, जो ब्रिटिश हुकूमत को चुनौती देने में सक्षम थी. लेकिन पानीपत की हार की वजह से मराठा फौज की ताकत कमजोर हो गयी, और 50 साल बाद एंग्लो-मराठा युद्धों में ब्रिटिश फौज को गंभीर चुनौती नहीं दे पायी. उस समय के ब्रिटिश इतिहासकारों सहित कई इतिहासकारों ने तर्क दिया है कि अगर पानीपत में मराठा शक्ति कमजोर नहीं हुई होती, तो ब्रिटिशों को भारत में कभी भी मजबूती से पांव जमाने का मौका नहीं मिल पाता.
- रुडयार्ड किपलिंग की कविता "With Scindia To Delhi" के लिए प्रेरणा: हालांकि इस युद्ध को दोनों पक्षों के लिए वीरता और पराक्रम के दृश्य के रूप में भी याद किया जाता है. जंग के बाद मराठा सेना के सेनापति सदाशिव भाऊ का मृत शरीर लगभग 20 मृत अफगान सैनिकों के बीच में मिला था. संताजी वाघ के मृत शरीर में चालीस से ज्यादा घाव पाए गए. पेशवा के वारिसों (सदाशिव भाऊ, पेशवा बाजीराव-प्रथम के भतीजे और विश्वास, पेशवा बाजीराव-प्रथम और काशीबाई के पोते) की बहादुरी को अफगानों द्वारा भी स्वीकार किया गया था. यशवंतराव पवार भी बेहद पराक्रम से लड़े और बहुत से अफगानों की हत्या की. जंग में उन्होंने अब्दाली के वजीर के पोते अताईखान के हाथी के ऊपर चढ़कर उसे मार डाला था.
- "आमचा विश्वास पानीपतात गेला": इस मुहावरे में 'विश्वास' शब्द बाजीराव के 17 वर्षीय बहादुर पोते और भरोसे, दोनों अर्थों के लिए इस्तेमाल किया जाता है. चूंकि विश्वास महाभारत के बहादुर योद्धा अभिमन्यु की तरह युद्ध में मारा गया था, और चूंकि मराठों की हार के बाद उनका यह विश्वास भी टूट गया था कि मराठों को कभी हराया नहीं जा सकता, इसलिए इस मराठी कहावत के मुताबिक: 1761 की लड़ाई में हमारा विश्वास मारा गया.
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