सिक्खों के ऊपर अत्याचार , रोक ना पाया कोई माई का लाल
पेशवा ने लिया बदला , मुघलो के घेरा और हुआ दिल्ली का हमला ।
सिख हुए आज़ाद , अब हम सब है महादेव के दास ।
1713 से 1719 ... इन छह सालों को कोई याद रखे या ना रखे, हमारे सिख भाइयों को याद रखना ही चाहिए , क्योंकि यही वो दौर था, जब सिखों और उनके गुरुओं पर मुग़ल बादशाह फर्रुखसियर ने सबसे ज़्यादा ज़ुल्म किये। इस दौर के जुल्मों की कहानी जब पढ़ी जाए , तो पता चलता है कि औरंगेज़ेब ने अपनी बादशाही के 50 साल में सिखों के साथ जो नहीं किया, उससे कहीं ज़्यादा ज़ुल्म और क़त्ले आम फर्रुखसियर ने इन छह सालों में किया ...। लेकिन ये सब ज़्यादा दिन नहीं चल पाया ।
उत्तर दिशा में तो कोई था नहीं जो सिखों को बचा सके , तो कौन था जिसने फर्रुखसियर के जुल्मों से हमारे सिख भाइयों को निजात दिलाई ??
1713 .. ये वही साल था जब बालाजीविश्वनाथ भट्ट को पेशवा बना दिया गया था । इधर शाहूजी महाराज और पेशवा बालाजीविश्वनाथ स्वराज को फिर से स्थापित करने में लगे थे और मराठों में ग्रह युद्ध चल रहा था, तो उधर फर्रुखसियर और सिखों के बीच संघर्ष शुरू हो गया था। इस संघर्ष में फर्रुखसियर ने बहुत बर्बरता दिखाई और उसका वर्चस्व भी बंगाल से लेकर उत्तरपश्चिम और बुंदेलखंड , मालवा से लेकर गुजरात तक बन गया। औरंगेजेब के गुजरने के बाद पहली बार ऐसा लग रहा था कि मुग़ल फिर से उठ खड़े हुए हैं।
ये वही दौर था जब मराठों को अपनी ही लड़ाई से फुरसत नहीं मिल रही थी। एक तरफ थे शाहूजी महाराज और बालाजीविश्वनाथ, तो दूसरी तरफ राजसबाई के पुत्र सम्भाजी को मीर कमरूद्दीन खान (निज़ाम) का साथ मिल गया था । लेकिन.... ऐसा नहीं था कि इस सब के बीच बालाजीविश्वनाथ की नज़र से मुग़ल बचे हुए थे। उनकी नज़र बराबर मुग़लों पर बनी हुई थी । वे बस सही मौके का इंतज़ार में थे....और ये मौक़ा उन्हें मिला 1718 में जब दिल्ली दरबार से सय्यद बंधू दक्खन की तरफ आए । दरअसल वे अब दक्खन में मुग़लों के सूबों पर फिर से पकड़ बनाना चाहते थे, जिन पर ऊपर से तो सूबेदार के तौर पर ही , लेकिन अंदर से स्वतंत्र हो कर मीर कमरूद्दीन खान (निज़ाम) मुग़ल सूबेदारी कर रहा था। सय्यद बंधूओं की मुलाक़ात कमरूद्दीन से अहमदनगर में हुई, लेकिन वापस जाने से पहले वे मराठों की भी टोह लेना चाहते थे, मगर पेशवा बालाजी ने उल्टे उनकी टोह ले ली ।
इसे ही कहते हैं मास्टरस्ट्रोक....सय्यद बंधुओं से मिलते ही पेशवा बालाजी समझ गए कि ये भी फर्रुखसियर से परेशान आ गए हैं और उसे हटाना चाहते हैं। पेशवा ने उनसे अलग जा कर बात की और थोड़ी ही देर में सब कुछ तय हो गया। जनवरी 1719 में पेशवा बालाजीविश्वनाथ ने पूरी फ़ौज के साथ पहली बार नर्मदा पार की और दिल्ली की तरफ बढ़े । इधर बालाजीविश्वनाथ अपनी सेना लेकर दिल्ली की तरफ बढ़ रहे थे, तो दूसरी तरफ सय्यद बंधुओं ने जाटों, राजपूतों और सिखों को भी न्योता भेज दिया था । 28 फरवरी 1719 को दिल्ली में कोहराम हुआ । दिल्ली पर नीचे से जाट , राजपूत और दक्खन से आगरा होते हुए मराठों ने लाल क़िले पर एक साथ धावा बोला ।
सिख तो फर्रुखसियर से इतना घबराए हुए थे कि इस युद्ध के बारे में सोच भी नहीं पाए ... मगर युद्ध हुआ, जिसमें मुग़ल बादशाह फर्रुखसियर की बुरी तरह से हार हुई। ये पूरी रणनीति पैशवा बालाजीविश्वनाथ और सय्यद बंधुओं के ही दिमाग़ की उपज थी। फर्रुखसियर को तख़्त से हटा दिया गया और मराठों के प्रभाव से फर्रुखसियर के चचेरे भाई रफी उल दरजात को बादशाह बनाया गया।
जोधपुर के महराज की उस बेटी को भी पेशवा बालाजीविश्वनाथ ने आज़ाद करवाया, जिसे फर्रुखसियर ज़बरदस्ती उठा लाया था और अपनी बेगम बना कर क़ैद कर लिया था । पेशवा बालाजी का सर काट कर लेन वाले को पेशगी के रूप में देने की तामील तक मुघलो ने कर दी थी ।
बात सिर्फ इतनी नहीं थी कि अब मुग़ल बादशाह वो बना था , जो मराठों के प्रभाव से तख़्त तक पहुंचा था, बल्कि इससे कहीं ज़्यादा कुछ था पेशवा बालानिविश्वनाथ के इस दांव में। हुआ ये था कि जब पेशवा बालाजीविश्वनाथ सतारा से निकले थे, तो अपनी योजना किसी को नहीं बताई थी। यहां तक कि शाहूजी को छोड़ कर सब को यही मालूम था कि बालाजी स्वराज के इलाक़ों से चौथ वसूली की मुग़लिया सनद लेने जा रहे हैं। सेना वे अपने साथ ये बोल कर ले गए थे, कि पहली बार दिल्ली जा रहे हैं, तो किसी तरह की परिशानि नहीं आनी चाहिए। उनके साथ इस मुहीम में खांडेराव दाभाड़े और पिला जी जाधव के अलावा और भी कुछ उत्तर हुज़ूरात के सरदार थे जो आने वाले समय मे स्वराज्य के नए योद्धा बनने वाले थे । साथ ही युवा बाजीराव भी थे , जिनके सैन्य जौहर दिल्ली वालों से पहली बार देखे थे ।
1719 से सिखों ने चैन की सांस ली , और वापस उनके वतन पंजाब में अमन कायम हुआ । और यह अमन शांति के पहले कुछ पल , शायद पेशवा दफ़्तरो की देन ही थी ।
स्वर्गीय श्रीमन्त नूह आलम पेशवा कृति ( तत्सम स्मृति लेख )
प्रभाकर भट्ट
श्रीमन्त
उत्तर पेशवा ट्रस्ट , कॉलिंजर किरवी ।
श्रीमंत नुह आलम पेशवा, हे पेशवे बाजीराव आणि मस्तानी बाई यांचे ८ वे वंशज होते ज्यांचे नुकतेच मागच्या मार्च मध्ये दुःखद निधन झाले , बुंदेल खंडातील बांदा रियासातीचे ते संस्थानिक होते
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