विनोद जाधव एक संग्राहक

Tuesday 20 July 2021

साहस के सात दशक अहिल्याबाई होल्कर

 होलकर साम्राज्य

🚩
सात दशक अहिल्याबाई होल्कर

साहस के सात दशक अहिल्याबाई होल्कर
पति की मौत के बाद अहिल्या ने सती होने का फैसला किया तो उनके ससुर मल्हार राव ने उनको सती होने से न सिर्फ रोका बल्कि बहू को राज्य की बागडोर सौंपने का मन बना लिया। तब अहिल्या ने भी सती प्रथा के खिलाफ आवाज बुलंद करते हुए कहा- मेरी मृत्यु हो जाने पर मुझे सुख मिलेगा, पर मेरे जीवित रहने पर लाखों प्रजाजनों को सुख मिलेगा। धार्मिक पाखंड के खिलाफ यह उनका पहला विद्रोह था।
भारतीय इतिहास में अप्रतिम साहस की प्रतिमूर्ति अहिल्याबाई होल्कर।
भारत के इतिहास के कुछ पन्ने ऐसे हैं जो समाज सुधार और खासकर महिला सशक्तीकरण के मामले में क्रांतिकारी सुलेख की तरह हैं। दुर्भाग्य से अस्मिता और सामाजिक न्याय के स्वाधीनोत्तर सरोकारों और व्याख्याओं के बीच अतीत की प्रेरणा को ज्यादा अहमियत नहीं दी गई। ऐसा ही एक प्रेरक नाम है- अहिल्याबाई होल्कर। महिला विरोधी हालात की जकड़बंदी से उठकर जिस तरह अहिल्या एक लोकप्रिय प्रजापालक के तौर पर सामने आईं, वह अपनी मिसाल आप है। उनका जन्म 31 मई 1725 को अहमदनगर के चौंडी नाम केगांव में हुआ था। उनके पिता मनकोजी राव शिंदे गांव के पाटिल यानी मुखिया थे। जब कोई स्त्री शिक्षा की बात भी नहीं सोचता था तो मनकोजी ने अपनी बेटी को घर पर ही पढ़ना-लिखाना सिखाया। अहिल्या किसी राजसी परिवार से तो नहीं थीं पर उसकी किस्मत में महारानी बनना लिखा था।
अहिल्याबाई के धैर्य और साहस की बड़ी परीक्षा तब हुई जब 1766 में उनके ससुर ने भी दुनिया को अलविदा कह दिया। अहिल्या ने राज्य की जिम्मेदारी अपने नेतृत्व में बेटे मालेराव को दी। पर विधाता का बड़ा कोप उन पर तब पड़ा जब शासन के कुछ ही दिनों में उनके जवान बेटे की मृत्यु हो गई। तब उन्होंने शासन व्यवस्था को अपने हाथ में लेने के लिए पेशवा के सामने याचिका दायर की। 11 दिसंबर, 1767 को अहिल्या इंदौर की शासक बनीं। मालवा की यह रानी एक बहादुर योद्धा और प्रभावशाली शासक होने के साथ कुशल राजनीतिज्ञ भी थीं। जब मराठा-पेशवा अंग्रेजों के इरादे न भांप पाए तब उन्होंने दूरदृष्टि दिखाते हुए पेशवा को आगाह करने के लिए 1772 में एक पत्र लिखा। इस पत्र में उन्होंने अंग्रेजों के प्रेम को भालू के जैसे दिखावा वाला बताया।
इंदौर उनके तीन दशक के शासन में एक छोटे गांव-कस्बे से फलते-फूलते शहर में तब्दील हो गया। मालवा में किले, सड़कें बनवाने का श्रेय अहिल्याबाई को ही जाता है। उनकी राजधानी माहेश्वर साहित्य, संगीत, कला और उद्योग का केंद्र बनी। उन्होंने अपने राज्य के द्वार कवि मोरोपंत, शाहिर अनंतफंदी और संस्कृत विद्यवान खुसाली राम जैसे दिग्गजों के लिए खोले। वो हर दिन लोगों की समस्याएं दूर करने के लिए सार्वजनिक सभाएं करती थीं। उनके शासन के दौरान उद्योग खूब फले-फूले तो किसान भी आत्मनिर्भर बने। अलबत्ता उन्हें इस बात की बहुत कचोट रही कि उनकी बेटी अपने पति यशवंतराव की मृत्यु के बाद सती हो गई थी। अहिल्याबाई का सात दशक लंबा जीवन धैर्य, सेवा और संघर्ष का तारीखी सुलेख है।

No comments:

Post a Comment

“कोरलाईचा किल्ला”.

  १३ सप्टेंबर १५९४.... कोकणातील रायगड जिल्ह्यामध्ये मुरुड तालुका आहे. मुरुड तालुक्याच्या उत्तरेला अलिबाग तालुका आहे या दोन्ही तालुक्यांमध्...