विनोद जाधव एक संग्राहक

Tuesday 20 July 2021

मालवाधिपति मल्हारराव होलकर

 होलकर साम्राज्य

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मालवाधिपति मल्हारराव होलकर एक सहासी, दूरदर्शी और मालवाधिपति मल्हारराव होलकर एक सहासी, दूरदर्शी और उदारशील शासक थे। उनके जीवन में अनेक अवसर आए जब उन्होंने अपनी उदारता का परिचय देकर अनूठी मिसाल पेश की थी।
एक बार जब जयपुर दरबार में महाराजा जयसिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्रों ईश्वरी सिंह और माधो सिंह के बीच राजगद्दी को लेकर विवाद शांत नहीं हुआ तो उदयपुर के महाराणा जगतसिंह द्वितीय के निमंत्रण पर मल्हाराव होलकर को बुलाया गया। इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार ईश्वरी सिंह जयपुर की गद्दी पर बैठे। महाराणा जगत सिंह मेवाड़ माधो सिंह को गद्दी पर बैठाने के पक्ष में थे । सन् 1748 ई, में मल्हारराव होलकर अपने पुत्र खंडेराव होलकर और दीवान गंगाधर को साथ लेकर ससैन्य बगरु के मैदान में माधोसिह के पक्ष में पहुंच गये I दोनों ओर से जमकर युद्ध हुआ‌।सैकड़ों योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए। ईश्वरी सिंह के मंत्री केशवदास खत्री के प्रयासों से मल्हार राव होलकर और ईश्वरी सिंह में संधि हो गई। संधि के अनुसार ईश्वरी सिंह ने माधो सिंह को टोंक के चार परगने और उम्मेद सिंह को बूंदी का क्षेत्र दे दिया।
यदुनाथ सरकार लिखते हैं कि ईश्वरी सिंह तथा मल्हारराव होलकर ने अपनी अपनी पगड़ी बदलकर बंधुत्व की भावना प्रकट की। ईश्वरी सिंह ने अपने भाई माधोसिंह तथा मल्हार होलकर को युद्ध क्षति की रकम का भुगतान शीघ्र करने का आश्वासन दिया।16 अगस्त सन् 1748 को ईश्वरी सिंह स्वयं मल्हारराव होलकर और उनके सरदारों से आकर मिले। दोनों ओर की सेनाएं अपने क्षेत्र में वापस लौट गईं।
इस तरह जयपुर राज्य के मंत्री केशवदास ने ईश्वरी सिंह के राज्य की रक्षा की, परंतु केशवदास के विरोधी हरगोविंद नाटाणी आदि ने महाराजा को उसके विरुद्ध बहकाना शुरू कर दिया कि इसी मंत्री ने माधव सिंह को टोंक और उम्मेद सिंह को बूंदी के परगने दिलाए हैं। उनके बहकावे में आकर ईश्वरी सिंह ने केशवदास को विष देकर मरवा दिया और उसे मारते समय कहा कि अब तेरा सहायक होलकर कहां है? यह समाचार जब मल्हारराव ने सुना तो वे अत्यंत क्रुद्ध हो गए ‌। उन्होंने ईश्वरी सिंह को दण्ड देने के लिए 29 सितम्बर 1750 ई.को अपनी सेना सहित जयपुर की ओर कूच किया ‌। ईश्वरी सिंह ने होलकर को रोकने के अनेक उपाय किए, लेकिन वे नहीं रुके। इस समय ईश्वरी सिंह का प्रधान हरगोविंद नाटाणी था‌। उसकी पुत्री से ईश्वरी सिंह के अनुचित संबंध होने के कारण उसकी अपकीर्ति हो रही थी ‌। इस कारण वह ईश्वरी सिंह से आन्तरिक वैर रखता था‌। और ईश्वरी को नष्ट करना चाहता था।
नाटाणी ने ईश्वरी सिंह से बदला लेने का यह अवसर ठीक समझा । उसने जयपुर की सेना को जान बूझकर तैयार नहीं किया । मल्हार राव होलकर की सेना जब जयपुर के करीब आ गई तब ईश्वरी सिंह को हरगोविंद नाटाणी की कुटिलता का हाल मालूम हुआ, लेकिन अब देर हो चुकी थी । 12 दिसम्बर सन् 1750 ई.की रात को ईश्वरी सिंह को कोई उपाय नहीं सूझा और उन्होंने विष खाकर आत्महत्या कर ली।13 दिसम्बर को होलकर की सेना बिल्कुल जयपुर के करीब पहुंच गई , लेकिन किले की बुर्जों पर कोई हल चल दिखाई नहीं दी‌। मल्हारराव होलकर ने अपने पुत्र खंडेराव होलकर को चुनिंदा सवारों के साथ जयपुर किले में भेजा ‌। वहां जानकारी मिली कि ईश्वरी सिंह ने विषपान कर आत्महत्या कर ली है ‌। यह सुनकर मल्हाराव होलकर बहुत दुखी हुऐ। मल्हार राव स्वयं राजमहल में पहुंचे। उन्होंने महाराजा ईश्वरी सिंह और उनकी पत्नियों की पार्थिव देह को नमन किया। पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार करवाया। मल्हारराव होलकर और ईश्वरी सिंह एक अच्छे मित्र एवं पगड़ी बदल भाई तो थे ही, लेकिन और भी एक गहरा रिश्ता था। ईश्वरी सिंह की बहिन अमर कुमारी ने मल्हारराव होलकर को इस घटना से डेढ़ दशक पूर्व अपना धर्म भाई बनाया था। वे बूंदी के राजा बुद्ध सिंह हाड़ा को ब्याही थीं। मल्हारराव होलकर इस दौरान जयपुर में रहे। उन्होंने जयपुर की जनता को पूर्ण सुरक्षा का भरोसा दिलाया। एवं अपनी सेना को सख्त निर्देश दिए कि जयपुर राज्य में किसी भी प्रकार की गडबड न हो। ईश्वरी सिंह की के तेरहवें की रस्म के उपरांत 29 दिसम्बर को माधोसिंह जयपुर पहुंचे। मल्हारराव ने आगे बढ़कर उनका स्वागत किया और हाथी पर अपने साथ बैठाकर राजमहल में लाए।
मल्हारराव होलकर ने उदारता का परिचय देते हुए माधो सिंह को विधी विधानुसार गद्दी पर बैठाया। माधोसिह ने इस उपकार के बदले मल्हार राव होलकर को अनेक उपहार और टोंक तथा रामपुरा के परगने भेंट स्वरूप दिऐ‌।उस घटना पर तत्तकालीन राजस्थानी कवि ने निम्न पंक्तियां व्यक्त कर मल्हारराव होलकर की प्रशंसा की-
अईयो बखत मल्हार कौ , अईयो बखत अबीह।
गरजण लागा गाड़री , डरपड लागा सींह।।१।।
सिंहा सिर नीचा किया , गाडर करै गलार।
अधिपतियां सिर ओढ़नी , सिर पर पाघ मल्हार।।२।।
घनश्याम होलकर- वरिष्ठ पत्रकार ,भरतपुर

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