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Tuesday, 5 April 2022

नजीब म्हणजे जगाच्या अस्तापर्यंत मराठ्यांच्या काळजात रूतलेला खंजीर

 नजीब म्हणजे जगाच्या अस्तापर्यंत मराठ्यांच्या काळजात रूतलेला खंजीर

पोस्तसांभार :प्रसाद शिंदे 




नजीब म्हणजे जगाच्या अस्तापर्यंत मराठ्यांच्या काळजात रूतलेला खंजीर. याच्यामुळेच पानिपत घडले, उत्तरेतील मराठ्यांचे वर्चस्व सहन न झालेला आणि मराठ्यांना उखडून फेकण्याचा प्रयत्न करणारा पाताळयंत्री व्यक्ती.
पानिपत घडले पण कायमस्वरूपी भळभळती जखम देवून गेले. नंतर मल्हारबाबांनी घडी सांभाळली, महादजी उभे राहिले. उत्तरेची जबाबदारी मल्हारबाबांकडून पाटीलबावांकडे आली आणि शेवटपर्यंत समर्थपणे सांभाळली. पण पानिपतचा सल आणि दगाबाज नजिब पाटीलबावांच्या नजरेसमोरून हटत नव्हता,काळजात घर करून राहिलेला.
उत्तरेतील सरदार व पेशवे, पानिपताचे रामायण घडूनही नजीबाला पदराखाली घेत होते, पण ऐकतील ते पाटीलबावा कसले. त्यांनी ठरविलेच होते नजीबाचा काटा काढायचा आणि मराठा सत्तेला लागलेले ग्रहण नाहिसे करायचे आणि ते केलेच.
नजीबचा काटा काढण्यासाठी पाटीलबावांनी केलेले नियोजन किती अप्रतिम होते आणि त्यापेक्षा पानिपताला कारणीभूत झालेल्या व्यक्तीला संपविण्याची इच्छा किती प्रबळ होती हे दिसून येते.
नजिब कसा मारला याबद्दल माहिती निलेश ईश्वरचन्द्र करकरे यांच्या श्रीनाथ माधवजी या पुस्तकात मिळाली असून ती वाचकांपुढे ठेवत आहे.
माधवजी ने अपनी सेना के सम्मुख खडे हो कर कहा - "हम यहाँ नजीब का बदला लेने के लिये आए हैं। दत्ताजी, जनकोजी व तुकाजीरावशिंदे का बलिदान नजीब के ही कारण हुआ। मेरा तो एक पैर ही काट डाला गया। इस प्रकार शिंदेवंश के साडे तीन योद्धाओं के बलिदान का कारण सिर्फ यह नजीब है और होलकर उसे व उसके बेटे को गले लगा रहा है। मै इस बात को फिर से लिखकर पेशवा के दफतर भेजूंगा।
परंतु २४ एप्रिल १७७० को रामचन्द्र गणेश कानडे ने इस बात का विरोध किया और पेशवा ने भी तब कानडे का ही समर्थन किया। इसी दिन से माधवजी ने नजीब खान पर निगाह रखने के लिए श्रीदेवजी गवळी (गावली) तथा लखबादादा लाड को सचेत किया। इन दोनों रणकुशल मराठा सेनानायकों ने अपने अपने जासूस नजीब के राज्य में तथा उसके सैन्य शिविर में भेज दिए। यह संख्या काफी अधिक थी। माधवजी इन जासूसों से
कभी नहीं मिलते थे परंतु खबर पूरी मिलती रहती थी। नजीब व झाबेता खान इस बात से संतुष्ट थे कि मराठा
सेनापतियों कानडे, होलकर और बीनीवाले को तो मित्र बना ही लिया है और उन्हें यूँ ही बातों में उलझाए रखेंगे।
नजीब और झाबेता इस बात से बेखबर थे कि माधवजी के विश्वस्त श्रीदेवजी गवळी (गावली) तथा लखबादादा लाड ने चारों तरफ से उनको घेर लिया है। नजीब के दफतर में, सेना को मिलने वाली रसद, दाना-पानी-चारे को उठाने वालों में। कनातें व तम्बुओं को उठानेवालों में, रसोई में खाना बनानेवालों में और नजीब का हुक्का भरने वालों में भी श्रीदेवजी गवळी (गावली) तथा लखबादादा लाड ने अपने कुछ जासूस दाखिल कर दिए
थे। धीरे धीरे इन जासूसों की संख्या में बढोतरी होने लगी। नजीब की राजधानी नगीना में और सहारनपुर में भी माधवजी ने अपने कुछ आदमी भेज दिए। कई बार किये गए प्रयत्नों के बाद इन जासूसों को एक दिन नजीब का हुक्का भरने का अवसर मिल ही गया। तब इन जासूसों ने हुक्के में हल्के जहर का प्रयोग किया। रसोई में भी कुछ दिनों बाद मराठा साभ्राज्य के हित में कार्य करने वाले माधवजी के इन लोगों ने नजीब के खाने में पुनः हल्के जहर का इस्तेमाल किया। जिससे नजीब दिनों दिन कमजोर और चिडचिढा होता गया। वह अधिक अस्वस्थ रहने लगा था। रातों में खौफ के मारे नींद नहीं आती थी। लगभग ६ मास की मेहनत के बाद मराठा छावनी में रामचन्द्र गणेश कानडे से नजीब की मुलाकात हुई। मसलत समाप्त होने पर वह अपने शिविर की तरफ रवाना हुआ। वहाँ पर रखी उसकी पालकी के नजदीक सिर्फ चार कहार लोग खडे हुए थे। अँधेरे का लाभ कहारों ने उठाया और नजीब की साँस रोककर मार डाला। वहाँ से उसे वे थोडी दूरी तक यूँ ही उठाकर चलते रहे जहाँ नजीब के चार पाँच घुडस्वार खडे थे। चार पाँच घुडस्वारों के संरक्षण में वे नजीब के शव को पालकी में बिठाए काफी देर तक चलते
रहे। अंत में जब नजीब का शिविर आया तब इन कहारों ने घुडसवारों को खबर दी कि नजीब खान के शरीर में कोई हलचल नहीं है और वे पालकी में ही बैठे है।
या इस प्रकार सर्वसाधारण को सूचना दी गई कि काफी समय से बीमर चल रहे नजीब की ३० अक्तूबर १७७०
को मराठा छावनी से अपनी पालकी में बैठ कर वापस जाते वक्त मृत्यु हो गई। उसके शरीर पर कोई चोट न थी।

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