झाँसी की रानी के वंशज और पुत्र दामोदर राव की मार्मिक कहानी
भाग ३
दामोदर राव की करुणा भरी कहानी
भाग ३
दामोदर राव की करुणा भरी कहानी
१८५७ के युद्ध का एक चित्र
रानी के मृत्यु के तीन दिन बाद तक ग्वालियर में छिप-छिप कर रहने के बाद रामचंद्र राव देशमुख तथा रघुनाथ सिंह के नेतृत्व में युद्ध में जीवित बचे रानी के 60 विश्वासपात्र दामोदर राव को लेकर चंदेरी(बुंदेलखंड) की तरफ प्रस्थान कर गये। उस समय उनके पास 60 ऊँट तथा 22 घोड़े के साथ 60,000 रुपये थे। मार्ग बहुत असहनीय था, अंग्रेजों के डर के कारण रास्ते में इन लोगों को कोई मदद भी नही देता ना ही रहने के लिये शरण। ईश्वर की अजीब लीला थी कि जिसके लिए महारानी लक्ष्मीबाई ने अपने प्राण दे दिये जिन्हें वे अपने शरण में रखती थी, आज वे लोग ही उनके बेटे तथा लोगों को भोजन तक नही दे रहे थे।
किसी गाँव में रहना इन सभी लोगों के लिए असंभव हो गया था जिसके कारण ये लोग दामोदर राव को लेकर ललितपुर के जंगल की तरफ चले गये। रहने लायक व्यवस्था तथा समानों के नही रहने के कारण इन्हें खुले आसमान के नीचे घासों पर सोना पड़ता था। गर्मी के महीनों में तेज धूप के कारण शरीर की त्वचा जल जाती थीं। खाने के लिए कुछ नही रहता फलतः जंगली भुट्टे तथा फल खाने पड़ते। कुछ समय बाद वर्षाऋतु आ गयी और पूरे जंगल में बाढ़ की तरह पानी फैल गया। ये दिन सभी लोगों के लिए बहुत ही कष्टप्रद थी।
बहुत जरूरी पड़ने पर समूह से कोई एक व्यक्ति प्राण हथेलियों पर रख कर गाँव जाता तथा जरूरत की वस्तुए ले आता। इन लोगों का जीवन जानवरों से भी बदतर हो गया था। उन्हीं दिनों ईश्वर की कृपा से एक गाँव का मुखिया बहुत अनुरोध करने पर इन लोगों के मदद के लिए तैयार हो गया। वो 500 रुपया हर महीने साथ ही 9 घोड़े तथा 4 ऊँट देने के बदले इन सभी साठों लोगों के लिए आवश्यक वस्तुओं, भोजन सामग्री तथा अंग्रेजों के बारे में जानकारियाँ देता था।
रानी के मृत्यु के तीन दिन बाद तक ग्वालियर में छिप-छिप कर रहने के बाद रामचंद्र राव देशमुख तथा रघुनाथ सिंह के नेतृत्व में युद्ध में जीवित बचे रानी के 60 विश्वासपात्र दामोदर राव को लेकर चंदेरी(बुंदेलखंड) की तरफ प्रस्थान कर गये। उस समय उनके पास 60 ऊँट तथा 22 घोड़े के साथ 60,000 रुपये थे। मार्ग बहुत असहनीय था, अंग्रेजों के डर के कारण रास्ते में इन लोगों को कोई मदद भी नही देता ना ही रहने के लिये शरण। ईश्वर की अजीब लीला थी कि जिसके लिए महारानी लक्ष्मीबाई ने अपने प्राण दे दिये जिन्हें वे अपने शरण में रखती थी, आज वे लोग ही उनके बेटे तथा लोगों को भोजन तक नही दे रहे थे।
किसी गाँव में रहना इन सभी लोगों के लिए असंभव हो गया था जिसके कारण ये लोग दामोदर राव को लेकर ललितपुर के जंगल की तरफ चले गये। रहने लायक व्यवस्था तथा समानों के नही रहने के कारण इन्हें खुले आसमान के नीचे घासों पर सोना पड़ता था। गर्मी के महीनों में तेज धूप के कारण शरीर की त्वचा जल जाती थीं। खाने के लिए कुछ नही रहता फलतः जंगली भुट्टे तथा फल खाने पड़ते। कुछ समय बाद वर्षाऋतु आ गयी और पूरे जंगल में बाढ़ की तरह पानी फैल गया। ये दिन सभी लोगों के लिए बहुत ही कष्टप्रद थी।
बहुत जरूरी पड़ने पर समूह से कोई एक व्यक्ति प्राण हथेलियों पर रख कर गाँव जाता तथा जरूरत की वस्तुए ले आता। इन लोगों का जीवन जानवरों से भी बदतर हो गया था। उन्हीं दिनों ईश्वर की कृपा से एक गाँव का मुखिया बहुत अनुरोध करने पर इन लोगों के मदद के लिए तैयार हो गया। वो 500 रुपया हर महीने साथ ही 9 घोड़े तथा 4 ऊँट देने के बदले इन सभी साठों लोगों के लिए आवश्यक वस्तुओं, भोजन सामग्री तथा अंग्रेजों के बारे में जानकारियाँ देता था।
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