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Thursday, 14 March 2019

झाँसी की रानी के वंशज और पुत्र दामोदर राव की मार्मिक कहानी भाग ४

झाँसी की रानी के वंशज और पुत्र दामोदर राव की मार्मिक कहानी
भाग ४
वर्षा के कारण एक साथ रहना इन साठों लोगों के लिए संभव नही था जिसके कारण रघुनाथ सिंह के कहे अनुसार वे सब कई समूहों में रहने लगे। दामोदर राव के समूह में कुल 11 लोग थे जो उनकी देखरेख करते थे। कुछ दिनों बाद दामोदर राव का समूह वेत्रावती (बेतवा) नदी के पास स्थित एक गुफा में रहने लगा। इस दौरान दामोदर राव हमेशा बीमारी से ग्रस्त रहे। धीरे-धीरे सभी समूह के लोग जहां-तहां बिखर गये। जिसे जहां आश्रय मिल गया वे वहीं पहचान छिपा कर रहने लगे।
गुफा में दो वर्ष तक रहने के बाद पैसों की कमी होने लगी फलस्वरूप गाँव का मुखिया इन लोगों को कहीं और चले जाने के लिए कहा जिसके बाद बचे हुए सभी 24 लोग ग्वालियर राज्य के शिपरी-कोलरा गाँव में आश्रय लेने पहुँचे जहां इन सभी लोगों को राजद्रोही समझकर जेल भेज दिया गया तथा सारे बचे हुए घोड़े, ऊँट तथा अन्य संसाधन जब्त कर लिये गये।

जेल से छूटने के बाद कई दिनों तक पैदल चलने के पश्चात वे सब झलारापतन पहुँचे, वहां पहले से ही समूह के कई लोग शरण लेकर रह रहे थे जिनका संबंध झाँसी के रानी से था। उन लोगों ने इन सभी की हरसंभव मदद की तथा उन्हीं में से एक नन्हेखान थे जो झाँसी में रिसालदार थे। नन्हेखान महारानी के मृत्यु के पश्चात झालावाड़-पतन में आकर रहने लगे थे तथा एक अंग्रेज अधिकारी मिस्टर फ्लिंक के दफ्तर में काम करते थे। नन्हेखान ने दामोदर राव को मिस्टर फ्लिंक से मिलवाया तथा दामोदर राव के लिए पेंशन की व्यवस्था करने के लिए प्रार्थना की। मिस्टर फ्लिंक दयालु स्वभाव के थे, उन्होंने इंदौर में अपने समकक्ष एक अंग्रेज अधिकारी रिचर्ड शेक्सपियर को झाँसी की रानी के बेटे को पेंशन देने के लिए संदेश भेजा। जिसके जबाव में रिचर्ड शेक्सपियर ने कहा कि यदि दामोदर राव सरेंडर कर देंगे तो हम उनके लिए पेंशन का व्यवस्था कर सकते।
कुछ दिन तक झालावड़-पतन में बंदीगृह में रहते समय झालावड़-पतन, राजस्थान के राजा पृथ्वीसिंह चौहान से दामोदर राव की मुलाकात हुयी। पृथ्वीसिंह चौहान ने भी अंग्रेज अधिकारी को सिफारिश पत्र भेजकर कहा था ये लक्ष्मीबाई के दत्तक पुत्र हैं, इनका संरक्षण किया जाए।
उसके बाद झालावड़पतन से दामोदर राव अपने सहयोगियों के साथ इंदौर के लिए निकल पड़े। रास्ते में पैसों की कमी के कारण नही चाहते हुए भी उन्हें अपनी माँ रानी लक्ष्मीबाई द्वारा दी हुयी दोनों कंगन बेचने पड़े जो उनकी आखिरी निशानी उनके पास बची हुयी थी। इंदौर पहुंचने पर दामोदर राव को 200 रुपया प्रति माह पेंशन मिलने लगी तथा साथ में केवल 7 लोगों को रखने की ही अनुमति मिली।

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