#महाराष्ट्र_का_प्राचीन_इतिहास
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#क्षत्रिया_मराठा_वाकाटक_साम्राज्य
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महाराष्ट्र पर राज करने वाला पहला क्षत्रिय मराठा राजवंश यानी सातवाहन तो इस सातवाहन राजवंश के ४५० वर्ष के कार्यकाल के बाद जब सातवाहनो की शक्ति क्षीण हुई तब महाराष्ट्र के विदर्भ प्रांत में उदय हुआ क्षत्रिय मराठा वाकाटक राजवंश का वाकाटक धीरे-धीरे अपनी शक्ति बढ़ाने लगे और उन्होंने आसपास के सभी प्रांत जीतकर अपना साम्राज्य पूरे महाराष्ट्र और उसके आसपास के प्रदेशों पर फैला दिया।
वाकाटक साम्राज्य का संस्थापक राजा #विंध्यशक्ति है।
राजा विंध्यशक्ति ने ही वाकाटक साम्राज्य की नींव रखी। वाकाटक साम्राज्य का कार्यकाल इसवी २५० से इसवी ५०० तक था। यानी २५० वर्ष तक वाकाटक राजाओ ने महाराष्ट्र और आसपास के प्रदेश पर राज कीया। वाकाटक साम्राज्य की राजधानी #नंदीवर्धन थी जिसे आज #नागपुर कहा जाता है। आज के महाराष्ट्र के नागपुर जिले का जो रामटेक गांव है वही वाकाटक साम्राज्य की मुख्य राजधानी थी। बाद में वाकाटक राजा प्रवरसेन प्रथम ने राजधानी को नंदीवर्धन से #वत्सगुल्म को स्थानांतरित किया वत्सगुल्म को ही आज #वाशिम कहा जाता है। वाशिम अब महाराष्ट्र का एक जिला है।
वाकाटक राजा #प्रवरसेन_प्रथम ने वाकाटक साम्राज्य का विस्तार किया और खुद को महाराज और सम्राट यह उपाधिया धारण की। प्रवरसेन प्रथम ने अपने कार्यकाल में ४ अश्वमेध यज्ञ किए थे और १ वाजपेय यज्ञ किया था।
वाकाटक राजा प्रथम पृथ्वीसेन ने दक्षिण के #कुंतल प्रांत को जीता और वाकाटक साम्राज्य का विस्तार किया कुंतल को ही आज का #कोल्हापुर कहा जाता है जो की आज महाराष्ट्र का एक जिला है। वाकाटक राजा #दूसरा_रूद्रसेन का विवाह उस वक्त के उत्तर भारत का सबसे बड़ा साम्राज्य याने गुप्त साम्राज्य उस गुप्त साम्राज्य के राजा चंद्रगुप्त प्रथम की पुत्री #प्रभावती_देवी से हुआ। और इस वैवाहिक संबंध के कारण वाकाटक साम्राज्य की ताकत बहुत ज्यादा बढ़ गई। गुप्त राजाओं ने बाद में जो दक्षिण दिग्विजय किया उसमें दक्षिण के जिन राज्यों को जीतने का उल्लेख मिलता है उसमें वाकाटक साम्राज्य का नाम नहीं आता गुप्त राजाओं ने दक्षिण के वाकाटक राजाओं को छोड़कर बाकी सभी राज्य जीत लिए।
दूसरा रूद्रसेन का प्रभावती गुप्त के साथ विवाह होणे के बाद केवल ५ वर्ष में मृत्यु हो गई। तब वाकाटक साम्राज्य का पूरा कार्यभार १३ वर्ष तक प्रभावती गुप्त ने चलाया। और इसमें दूसरा चंद्रगुप्त ने प्रभावती देवी की सहायता की।
वाकाटक राजा हरिशेन के समय में उसका वराहदेव नाम का मंत्री था उसने जग प्रसिद्ध वेरुल-अजंठा की गुफाओं में अनेक भित्तिचित्र और मूर्तियां बनाई।
वाकाटक राजा #दूसरा_प्रवरसेन ने महाराष्ट्री प्राकृत भाषा में #सेतुबंध नाम का ग्रंथ लिखा। इस प्राकृत महाराष्ट्री भाषा का ही रूपांतर बाद में मराठी भाषा में हुआ। प्रसिद्ध संस्कृत कवि #कालिदास इसी दुसरा प्रवरसेन के दरबार मे थे। यहीपर उन्होंने #मेघदूत नामक काव्य लिखा।
वाकाटक राजाओं ने जग प्रसिद्ध वेरुल-अजंठा की बहोत सारी लेनिया (गुफाओ) का निर्माण किया था। अजंठा की लेनियो (गुफाओ) में वाकाटकों की वंशावल है जहांपर उन्हें वाकाटक वंशकेतु कहा गया है वो वंशावली आगे देते है।
●विन्ध्यशक्ति
●प्रवरसेन प्रथम
●प्रवरपुर-नन्दिवर्धन शाखा
●रुद्रसेन प्रथम
●पृथ्वीसेन प्रथम
●रुद्रसेन द्वितीय
●प्रभावतीगुप्ता
●दिवाकरसेन
●दामोदरसेन (प्रवरसेन द्वितीय)
●नरेन्द्रसेन
●पृथ्वीसेण द्वितीय
●वत्सगुल्म शाखा
●सर्वसेन तृतीय
●विन्ध्यसेन (विन्ध्यशक्ति द्वितीय)
●प्रवरसेन द्वितीय
●देवसेन
●हरिसेण
तो यह रही क्षत्रिय मराठा वाकाटक राजवंश की वंशावली जो की वेरूल-अजिंठा की लेनियो (गुफाओ) दी गई है। जोकि प्रथम राजा विंध्यशक्ति से लेकर आखरी शासक हरीसेन तक दी हुई है।
कुछ इतिहासकारों ने वाकाटक राजाओं को ब्राह्मण घोषित किया लेकिन इसका कोई भी समकालीन प्रमाण नहीं सनातन वैदिक आर्य हिंदू धर्म के हिसाब से राजा सिर्फ क्षत्रिय होता है।
वाकाटक साम्राज्य के कालखंड में महाराष्ट्र का सर्वांगीण विकास हुआ। वाकाटक राजाओं ने संस्कृत और प्राकृत महाराष्ट्री कवियों को आश्रय दिया था और उन्हें उत्तेजीत किया था। वाकाटक कालखंड के काव्य और वांग्मय निर्मिती में महाराष्ट्री वैदर्भी और वच्छोमी पद्धति को प्राधान्य मिला।
वाकाटक साम्राज्य के राजाओं ने शिल्पकला को भी उत्तेजन दिया था। जो कि आज हम वेरुल अजंठा की लेनियो (गुफाओ) में देख रहे हैं।
🚩!!जय भवानी!!🚩
🚩!!जय शिवराय!!🚩
🚩!!हर हर महादेव!!🚩
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