शक क्षत्रप नहपान –
नहपान
:- यह क्षहरात वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था। इसने 119-124 ईस्वी के
मध्य शासन किया। नहपान की रजत तथा ताम्र मुद्राएं महाराष्ट्र, गुजरात,
काठियावाड़, अजमेर तथा दक्षिणी सिन्ध से प्राप्त हुई हैं। नासिक से अजमेर
तक उसके सिक्कों की प्राप्ति से उसके साम्राज्य की विशालता का अनुमान
लगाया जा सकता है। भड़ौच, दशपुर (मन्दसौर) सोपारा, गोवर्धन तथा नासिक जैसे
समृद्ध क्षेत्र उसके अधिकार में थे। इसने प्रारम्भ में क्षत्रप तथा बाद
में महाक्षत्रप की उपाधि ग्रहण की। स्वर्ण तथा रजत सिक्कों पर वह ‘राजन’
की उपाधि धारण किये हुए हैं। उसके समय स्वर्ण तथा रजत (कार्षापण) मुद्राओं
की विनिमय दर 1:35 थी।
पेरिप्लस
के अनुसार- मेम्बिरस (संभवत: नहपान) की राजधानी भिन्नगर थी, जिसे अद्यतन
दोहा नामक स्थान के रूप में चिन्हित किया गया है जो उज्जैन तथा भड़ौच के
मध्य मार्ग में स्थित है। नहपान के अमात्य आर्यामन का एक अभिलेख जुन्नार
(पुणे) से मिलता है। उसके दामाद ऋषभदत्त (उषावदात) के अभिलेख नासिक तथा
कार्ले से प्राप्त होते हैं। नहपान
समय
वह दक्षिणी प्रांत-गोवर्धन (नासिक) तथा मामल्ल (पूना) का वायसराय था।
नासिक अभिलेख संख्या 10 के अनुसार जब राजस्थान के उत्तमभद्र जाति के लोग
मालवों से घिरे हुए थे तो उनकी रक्षा के लिए ऋषभदत्त वहां गया तथा उसने
मालवों को बुरी तरह से परास्त कर पुष्कर तीर्थ में दान दिया। कार्ले
अभिलेख में ऋषभदत्त द्वारा करजिक (करजक) ग्राम बौद्ध संघ को तथा वर्णासा
तथा प्रभास नामक ग्राम ब्राह्मणों को दान में दिये जाने का उल्लेख है।
सातवाहन
शासक गौतमीपुत्र शातकर्णी द्वारा नहपान परास्त हुआ, उसकी मृत्यु के साथ
ही क्षहरात वंश का अन्त हो गया। नासिक गुहा लेख में वर्णित है कि उषावदात
ने देवताओं तथा श्रमणों के लिए 16 गांवों का दान दिया तथा गुफा अश्रणियों
में रहने वाले बौद्ध भिक्षुओं के भोजन की व्यवस्था के लिए एक खेत दान में
दिया।
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