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Monday, 9 August 2021

महाजनपद काल - एक सम्पूर्ण यात्रा (भाग-12)-चेदि महाजनपद

 


महाजनपद काल - एक सम्पूर्ण यात्रा (भाग-12)-चेदि महाजनपद

(Mahajanpada Period-Chedi Mahajanpada)
चेदि या चेति महाजनपद-
*पौराणिक 16 महाजनपदों में से एक था।
*यह शुक्तिमती नदी के पास का देश था, जिसमें बुंदेलखंड का दक्षिणी भाग और जबलपुर का उत्तरी भाग सम्मिलित था।
*बौद्ध ग्रंथों में जिन सोलह महाजनपदों का उल्लेख है उनमें यह भी था। कलिचुरि वंश ने भी यहाँ राज्य किया।
*किसी समय शिशुपाल यहाँ का प्रसिद्ध राजा था।
*उसका विवाह रुक्मिणी से होने वाला था कि श्रीकृष्ण ने रूक्मणी का हरण कर दिया इसके बाद ही जब युधिष्ठर के राजसूय यज्ञ में श्रीकृष्ण को पहला स्थान दिया तो शिशुपाल ने उनकी घोर निंदा की।
*इस पर श्रीकृष्ण ने उसका वध कर डाला।
*मध्य प्रदेश का ग्वालियर क्षेत्र में वर्तमान चंदेरी क़स्बा ही प्राचीन काल के चेदि राज्य की राजधानी बताया जाता है।
अन्य तथ्य-
*ऋग्वेद में चेदि नरेश कशुचैद्य का उल्लेख है ।
*रैपसन के अनुसार कशु या कसु महाभारत में वर्णित चेदिराज वसु है और इन्द्र के कहने से उपरिचर राजा वसु ने रमणीय चेदि देश का राज्य स्वीकार किया था।
*महाभारत में चेदि देश की अन्य कई देशों के साथ, कुरु के परिवर्ती देशों में गणना की गई है।
*कर्णपर्व में चेदि देश के निवासियों की प्रशंसा की गई है ।
*महाभारत के समय कृष्ण का प्रतिद्वंद्वी शिशुपाल चेदि का शासक था। इसकी राजधानी शुक्तिमती बताई गई है। चेतिय जातक में चेदि की राजधानी सोत्थीवतीनगर कही गई है जो श्री नं0 ला. डे के मत में शुक्तिमती ही है इस जातक में चेदिनरेश उपचर के पांच पुत्रों द्वारा हत्थिपुर, अस्सपुर, सीहपुर, उत्तर पांचाल और दद्दरपुर नामक नगरों के बसाए जाने का उल्लेख है।
*महाभारत में शुक्तिमती को शुक्तिसाह्वय भी कहा गया है।
*अंगुत्तरनिकाय में सहजाति नामक नगर की स्थिति चेदि प्रदेश में मानी गई है।सहजाति इलाहाबाद से दस मील पर स्थित भीटा है। चेतियजातक में चेदिनरेश की नामावली है जिनमें से अंतिम उपचर या अपचर, महाभारत आदि0 पर्व 63 में वर्णित वसु जान पड़ता है।
*वेदव्य जातक में चेति या चेदि से काशी जाने वाली सड़क पर दस्युओं का उल्लेख है।
*विष्णु पुराण में चेदिराज शिशुपाल का उल्लेख है।
*मिलिंदपन्हो में चेति या चेदि का चेतनरेशों से संबंध सूचित होता है। सम्भवतः कलिंगराज खारवेल इसी वंश का राजा था। मध्ययुग में चेदि प्रदेश की दक्षिणी सीमा अधिक विस्तृत होकर मेकलसुता या नर्मदा तक जा पहुँची थी जैसा कि कर्पूरमंजरी से सूचित होता कि नदियों में नर्मदा, राजाओं में रणविग्रह और कवियों में सुरानन्द चेदिमंडल के भूषण हैं।

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