अश्मक ( महाराष्ट्र ) महाजनपद
अश्मक हे प्राचीन भारतातील सोळा महाजनपदांपैकी एक होते.
अश्मक हे राज्य दक्षिण महाराष्ट्राच्या भूप्रदेशात होते. मराठवाड्यातील नांदेड जिल्हा, आंध्रप्रदेशातील निझामाबाद जिल्हा आणि गोदावरी नदीच्या खोर्यात हे राज्य होते. निझामाबाद जिल्ह्यातील पोतन म्हणजे आधुनिक बोधन ही अश्मक राज्याची राजधानी होती.
अश्मक :
भारतातील मध्यदेशांतर्गत एक प्राचीन देश. भारतीय युद्धात कौरवपक्षात अश्मक राजा सामील असल्याचा उल्लेख आढळतो. पाणिनीच्या “आवन्त्याश्मकः” अशा निर्देशावरून पूर्वी हा देश अवंतीसमीप असावा असे दिसते. कालांतराने मात्र खानदेशापासून गोदावरी नदीपर्यंतचे आधुनिक नासिक, अहमदनगर जिल्हे, तसेच खानदेश, वऱ्हाड आणि मराठवाड्याचा काही भाग मिळून झालेल्या देशास ‘अश्मक’ नाव प्राप्त झाले. गौतमी बलश्रीच्या नासिक-शिलालेखात याला ‘असक’ तर बौद्ध वाङ्मयात याला ‘अस्सक’ म्हटले आहे. सातवाहन व त्यानंतर वाकाटकांचे येथे आधिपत्य होते. पैठण ही त्याची राजधानी होती. अजिंठा- -गुंफालेखात अश्मकराजांचा उल्लेख मिळतो.
शाह, र. रू. जोशी, चंद्रहास
अश्मक महाजनपद
अश्मक अथवा अस्सक महाजनपद पौराणिक 16 महाजनपदों में से एक था। नर्मदा और गोदावरी नदियों के बीच अवस्थित इस प्रदेश की राजधानी 'पाटन' थी। आधुनिक काल में इस प्रदेश को महाराष्ट्र कहते हैं। बौद्ध साहित्य में इस प्रदेश का उल्लेख मिलता है, जो गोदावरी के तट पर स्थित था।
स्थिति
'महागोविन्दसूत्तन्त' के अनुसार यह प्रदेश रेणु और धृतराष्ट्र के समय में विद्यमान था। इस ग्रन्थ में अस्सक के राजा ब्रह्मदत्त का उल्लेख है। *सुत्तनिपात[1] में अस्सक को गोदावरी तट पर स्थित बताया गया है। इसकी राजधानी पोतन, पौदन्य या पैठान[2] में थी।
पाणिनि ने अष्टाध्यायी[3] में भी अश्मकों का उल्लेख किया है।
सोननंदजातक में अस्सक को अवंती से सम्बंधित कहा गया है।
अश्मक नामक राजा का उल्लेख वायु पुराण[4] और महाभारत में है--'अश्मकों नाम राजर्षि: पौदन्यं योन्यवेशयत्'। सम्भवत: इसी राजा के नाम से यह जनपद अश्मक कहलाया।
ग्रीक लेखकों ने अस्सकेनोई लोगों का उत्तर-पश्चिमी भारत में उल्लेख किया है। इनका दक्षिणी अश्वकों से ऐतिहासिक सम्बन्ध रहा होगा या यह अश्वकों का रूपान्तर हो सकता है।
पौराणिक वर्णन
कूर्मपुराण तथा बृहत्संहिता[5] में अश्मक उत्तर भारत का अंग माना गया है। इन ग्रंथों के अनुसार पंजाब के समीप अश्मक प्रदेश की स्थिति थी, परन्तु राजशेखर ने अपनी 'काव्य-मीमांसा'[6] में इसकी स्थिति दक्षिण भारत के प्रदेशों में मानी है। राजशेखर के अनुसार माहिष्मती[7] से आगे दक्षिण की ओर 'दक्षिणापथ' का आरम्भ होता है, जिसमें महाराष्ट्र, विदर्भ, कुंतल, क्रथैशिक, सूर्पारक[8], कांची, केरल, चोल, पांड्य, कोंकण आदि जनपदों का समावेश बतलाया गया है। राजशेखर अश्मक जनपद को इसी दक्षिणापथ का अंग मानते हैं। ब्रह्मांडपुराण में यही स्थिति अंगीकृत की गई है।
विद्वान् विचार
'दश-कुमारचरित' में दंडी ने, 'हर्षचरित' में बाणभट्ट ने तथा 'अर्थशास्त्र' की टीका में भट्टस्वामी ने भी इसे महाराष्ट्र प्रान्त के अंतर्गत माना है। 'दशकुमार चरित' के अष्टम उच्छ्वास के अनुसार अश्मक के राजा ने कुंतल, कोंकण, वनवासि, मुरल, ऋचिक तथा नासिक के राजाओं को विदर्भ नरेश से युद्ध करने के लिए भड़काया, जिससे उन लोगों ने विदर्भ नरेश पर एक साथ ही आक्रमण कर दिया। इससे स्पष्ट है कि अश्मक महाराष्ट्र का ही कोई अंग या समग्र महाराष्ट्र का सूचक था, विदर्भ प्रान्त का किसी प्रकार अंग नहीं हो सकता, जैसा काव्यमीमांसा पर अंग्रेज़ी टिप्पणी में निर्दिष्ट किया गया है।[9]
सन्दर्भ
नाहर, डॉ रतिभानु सिंह (1974). प्राचीन भारत का राजनैतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास. इलाहाबाद, भारत: किताबमहल. पृ॰ 112. पाठ "
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