विनोद जाधव एक संग्राहक

Monday, 6 April 2020

हौसले, हिम्मत और मोहब्बत की निशानी किला जाधवगढ़ भाग 3


हौसले, हिम्मत और मोहब्बत की निशानी

किला जाधवगढ़
भाग 3
बाजीराव-मस्तानी की अमर कहानी जाधवगढ़ किले के पास ही है मशहूर दिवे घाट, जहां देश विदेश के उन सैलानियों का जमावड़ा लगता रहा है जिन्हें पर्वतारोहण में खास रुचि है। और इसी देवे घाट में स्थित है मस्तानी झील। घाटी की गहराइयों को नापती इस झील के बारे में कहा जाता है कि यही वो जगह है जहां बाजीराव पेशवा अपनी प्रेमिका मस्तानी से मिला करते थे। बाजीराव का पूरा नाम बाजीराव बालाजी भट्ट था। ब्राह्णण होने के बावजूद उन्होंने मराठा साम्राज्य के चौथे छत्रपति शाहू जी की सेनाओं का नेतृत्व किया। बाजीराव को उत्तर में मराठा साम्राज्य के विस्तार का श्रेय दिया जाता है। उनकी शादी काशी बाई से हुई। काशी बाई से उनके दो बेटे हुए जिनमें से एक नाना साहब को शाहू जी ने 1740 में अपना पेशवा नियुक्त किया। बाजीराव की दूसीर शादी मस्तानी से हुई और उनसे हुए बेटे कृष्णराव को उस समय के ब्राह्णण समुदाय ने अपनाने से अस्वीकार कर दिया। बाद में इसकी परवरिश शमशेर बहादुर के तौर पर हुई। 1761 की पानीपत की लड़ाई में शमशेर बहादुर 27 साल की उम्र में मराठों की तरफ से लड़ते हुए शहीद हो गया। मस्तानी दरअसल पन्नाा के महाराजा छत्रसाल की मुस्लिम पत्नी से हुई बेटी थी। बाजीराव और मस्तानी के पोते अली बहादुर ने बाद में अरसे तक बुंदेलखंड में बाजीराव की मिल्कियत की देखरेख की और उसी ने उत्तर प्रदेश की बांदा रियासत की नींव रखी।

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