हौसले, हिम्मत और मोहब्बत की निशानी
किला जाधवगढ़
भाग 2
इतिहास के झरोखे सेशाहजहां द्वारा बंदी बनाए गए छत्रपति शिवाजी के पोते शाहू जी 1707 में इक्कीस साल बाद जेल से रिहा हुए। मराठवाड़ा के लिए वो वक्त मुसीबतों का था। इलाके पर तब भी मुगलों का कब्जा था लेकिन औरगंजेब की मौत के साथ ही इनके पैर भी इस इलाके से उखड़ने लगे थे। मराठों के बीच शिवाजी के दूसरे बेटे राजाराम की विध्ावा रानी ताराबाई की सत्ताशीन होने को लेकर मतभेद लगातार कायम थे। शाहू जी ने सारे हालात को देख समझ कर एक समग्र योजना बनाई, जिसका अंतिम उद्देश्य था इस इलाके में मराठों की संप्रभुता फिर से कायम करना। आम इंसानों के बीच से हुनरमंदों को पहचानने की जबर्दस्त काबिलियत रखने वाले शाहू जी ने अपने विश्वासपात्र लोगों का एक खास जत्था तैयार किया। इन लोगों को शाहू जी ने पूरे इलाके में फैल जाने का निर्देश दिया और सबको अपने जैसे ही तमाम लोगों को अपने साथ जोड़कर एक ऐसी फौज तैयार के काम में जुट जाने को कहा, जो किसी भी हमले का मुकाबला करने में सक्षम हो। शाहू जी के इसी खास दस्ते में सबसे अहम शख्स थे पिलाजी जाध्ावराव। जाध्ाववाड़ी और सासवड इलाके के चुनिंदा जांबाजों को इकट्ठा कर पिलाजी ने लड़ाकू दस्ते तैयार किए। पिलाजी की तलवारबाजी के किस्से अब भी इलाके की लोककथाओं और लोक गीतों में सुने जा सकते हैं। पिलाजी और उनके जैसे कुछ अन्य जांबाजों की मदद से ही आखिरकार शाहू जी फिर से राजगद्दी पर बैठे और अपने वफादार पेशवाओं की मदद से इलाके पर राज किया।
जाधवगढ़ किले की खासियतपिलाजी जाधवराव ने पेशवाओं की तीन पीढ़ियों और मराठों की लंबे समय तक सेवा करने के बाद 1784 में आखिरी सांस ली थी। जाध्ावगढ़ किला अब भी उनकी दूरदृष्टि और युद्धकौशल रणनीति की कहानियां सुनाता है। दूर दूर तक खुले मैदान के बीच बने इस किले के मुख्यद्वार तक पहुंचने का रास्ता घुमावदार है। किले के मुख्यद्वार तक पहुंचने के लिए बनी सीढ़ियां भी यू टर्न लेकर ऊपर तक पहुंचती है, मतलब कि दुश्मन की किसी भी टुकड़ी को किले के दरवाजे पर पहुंचने से पहले हर मोड़ पर मुकाबले के लिए तैयार मराठा सैनिकों से लोहा लेना होता था। ये किला दुश्मन के हमले से बचने के लिए तो बेजोड़ था ही, आरामतलबी के भी इसमें पूरे इंतजाम हैं। अनाज रखने के लिए बनी बड़ी सी बखारी और विपत्ति के समय बच निकलने के लिए गर्भतल में बनी लंबी सुरंग अब भी मौजूद है। किले की चौड़ी बाहरी दीवारों और परकोटे के बीच महिलाओं के रहने के लिए अलग से इंतजाम किया गया है।
इसी भीतरी इलाके में बरसात का पानी इकट्ठा करने के लिए एक बावड़ी भी बनी थी, जिसे अब स्वीमिंग पूल में तब्दील कर दिया गया है। 300 साल पहले बने किले में वाटर हार्वेस्टिंग की इतनी पुरानी व्यवस्था अचरज में डाल देती है। किले की भीतरी बनावट भी कम हैरान कर देने वाली नहीं है। राजपूताना महलों के विपरीत इस किले में कहीं भी किसी तरह की शौकीनमिजाजी के प्रमाण नहीं मिलते। ना दीवारों पर कहीं कोई नक्काशी, ना घुमावदार मेहराब और ना ही कहीं तड़क भड़क वाली चीजें। हां, मुख्य प्रवेश द्वार पर लगी नुकीले भाले और दरवाजे से भीतर घुसते ही दाहिनी तरफ हाथियों को भोजन खिलाने के लिए रखी शिला जरूर किले को अलग आभा प्रदान करती है। किला होटल में भले तब्दील हो गया हो, पर इसके मुख्य कर्ताधर्ता को अब भी कहा किलेदार ही जाता है। किले के परिसर में एक तीन सौ साल पुराना गणेश मंदिर भी है, जिसमें पूजा अर्जना का क्रम लगातार चलता रहता है। पिलाजी के वंशजों की शादियां आज भी इसी मंदिर में ही होती हैं।
जाधवगढ़ किले की खासियतपिलाजी जाधवराव ने पेशवाओं की तीन पीढ़ियों और मराठों की लंबे समय तक सेवा करने के बाद 1784 में आखिरी सांस ली थी। जाध्ावगढ़ किला अब भी उनकी दूरदृष्टि और युद्धकौशल रणनीति की कहानियां सुनाता है। दूर दूर तक खुले मैदान के बीच बने इस किले के मुख्यद्वार तक पहुंचने का रास्ता घुमावदार है। किले के मुख्यद्वार तक पहुंचने के लिए बनी सीढ़ियां भी यू टर्न लेकर ऊपर तक पहुंचती है, मतलब कि दुश्मन की किसी भी टुकड़ी को किले के दरवाजे पर पहुंचने से पहले हर मोड़ पर मुकाबले के लिए तैयार मराठा सैनिकों से लोहा लेना होता था। ये किला दुश्मन के हमले से बचने के लिए तो बेजोड़ था ही, आरामतलबी के भी इसमें पूरे इंतजाम हैं। अनाज रखने के लिए बनी बड़ी सी बखारी और विपत्ति के समय बच निकलने के लिए गर्भतल में बनी लंबी सुरंग अब भी मौजूद है। किले की चौड़ी बाहरी दीवारों और परकोटे के बीच महिलाओं के रहने के लिए अलग से इंतजाम किया गया है।
इसी भीतरी इलाके में बरसात का पानी इकट्ठा करने के लिए एक बावड़ी भी बनी थी, जिसे अब स्वीमिंग पूल में तब्दील कर दिया गया है। 300 साल पहले बने किले में वाटर हार्वेस्टिंग की इतनी पुरानी व्यवस्था अचरज में डाल देती है। किले की भीतरी बनावट भी कम हैरान कर देने वाली नहीं है। राजपूताना महलों के विपरीत इस किले में कहीं भी किसी तरह की शौकीनमिजाजी के प्रमाण नहीं मिलते। ना दीवारों पर कहीं कोई नक्काशी, ना घुमावदार मेहराब और ना ही कहीं तड़क भड़क वाली चीजें। हां, मुख्य प्रवेश द्वार पर लगी नुकीले भाले और दरवाजे से भीतर घुसते ही दाहिनी तरफ हाथियों को भोजन खिलाने के लिए रखी शिला जरूर किले को अलग आभा प्रदान करती है। किला होटल में भले तब्दील हो गया हो, पर इसके मुख्य कर्ताधर्ता को अब भी कहा किलेदार ही जाता है। किले के परिसर में एक तीन सौ साल पुराना गणेश मंदिर भी है, जिसमें पूजा अर्जना का क्रम लगातार चलता रहता है। पिलाजी के वंशजों की शादियां आज भी इसी मंदिर में ही होती हैं।


No comments:
Post a Comment